निःशुल्क इलाज तो छोड़िए मरीजों और तीमारदारों को निःशुल्क शौचालय देने में भी नाकाम राज्य सरकार
रिपोर्ट : कार्तिक उपाध्याय
वैसे तो राज्य में हर सड़क पर कई जगह आपने स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा लगाए गए बड़े-बड़े पोस्टर देखे होंगे,जिसमें बहुत से वादे नागरिकों के लिए लिखे होते हैं या फिर ऐसा दर्शाया जाता है कि राज्य में नागरिकों को पूरे भारत से बेहतर इलाज मिल रहा हो।
नागरिकों को निशुल्क सुविधा,निशुल्क दवा आदि इत्यादि देने की अनेकों घोषणाएं आए दिन होते रहती है,स्वास्थ्य मंत्री जहां भी जब भी जिस भी मंच पर पहुंचते हैं स्वयं के मंत्रालय की तारीफ करते नहीं रुकते।
वही बात करें हकीकत की और हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल कि जो की कुमाऊं तराई एवं उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों के लिए सबसे बड़ा अस्पताल है,हजारों की संख्या में प्रतिदिन मरीज यहां पहुंचते हैं,लेकिन दुर्भाग्य का विषय यह है कि इस सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों के साथ रहने वाले तीमारदारों के लिए और प्रतिदिन ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए एक निशुल्क शौचालय भी अस्पताल परिसर में उपलब्ध नहीं है,ओपीडी में अपने नंबर का इंतजार करते हुए यदि किसी को शौचालय जाना है तो उसे ₹10 देने होते हैं,पहाड़ों से तराई से अपने मरीज को लेकर अस्पताल में भर्ती करने के बाद जो भी तीमारदार वहां रुकते हैं उन्हें भी शौचालय के लिए ₹10 देने ही होते हैं।
सवाल यह है कि सिर्फ होर्डिंग पोस्टर लगा देने से स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रचार कर देने से क्या सुविधा धरातल पर पहुंच जाएगी,निशुल्क दवा देने का वादा करने वाली सरकार आखिर मरीज को तीमारदारों को नागरिकों को निशुल्क शौचालय देने में भी आखिर कैसे नाकाम है?
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