पेड़ काटने का मुख्य कारण शहर में बड़ता ट्रैफिक दबाव और उसके कारण हो रहीं अव्यवस्था एवम सड़क चौड़ीकरण हैं,लेकिन आपदा के साथ हमेशा बंधन में बंधे रहने वाले इस प्रदेश की सरकारें न तो दूरगामी सोच रखती हैं और न ही प्रकृति के प्रति कुछ गंभीर हैं,इनका नारा तो विकास हैं लेकिन उस विकास के कारनामें के बीच एक विनाश भी छुपा हैं जिसे हर आंख नहीं देख पा रही,हालांकि राज्य में कई पर्यावरण मित्र हैं जो समय समय पर इसके खिलाफ बोलते लिखते सरकारों को टोकते आएं हैं।
वर्तमान सरकार ने हल्द्वानी शहर के ग्रामीण इलाकों से शहर तक सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सैकड़ो पेड़ों की हत्या दिनदहाड़े खुलेआम कर दी जबकि इस हल्द्वानी शहर में कई वर्षों से एक रिंग रोड प्रस्तावित है।
कहने को तो सरकार डबल इंजन की है लेकिन इस सरकार में किसी कार्य के पूर्ण होने की गति बैलगाड़ी के समान है,लगभग डेढ़ सौ करोड़ से शुरू हुई हल्द्वानी रिंग रोड की डीपीआर लगभग 750 करोड़ पहुंच गई लेकिन रिंग रोड के नाम पर धरातल पर एक पहला पत्थर तक न लग सका।
फिलहाल अखबारों में यही छपता आया है की रिंग रोड बनाने की यह समस्या खत्म,वह समस्या खत्म,जल्द रिंग रोड बनेगी,इतना बजट पास हुआ,इसकी स्वीकृति मिली आदि इत्यादि,लेकिन वह रिंग रोड कब बनेगी यह कह पाना बहुत मुश्किल है।
फिलहाल जानकारी यह है रिंग रोड दो चरणों में बनाई जाएगी जिसके लिए पहले चरण में होने वाले कार्य के लिए बजट आने का इंतजार हैं,रिंग रोड का रोड मैप तैयार है।
यदि दो तीन इंजन वाली भाजपा सरकार रिंग रोड के प्रति गंभीर होती और केंद्र सरकार की योजना को जल्द से जल्द पूर्ण करने के लिए काम कर पाती तो सरकार को वाकई डबल इंजन वाली सरकार कहना उचित रहता।
हल्द्वानी शहर में जो जाम होता है वह उत्तराखंड के पहाड़ों में आने वाले पर्यटकों के कारण होता है क्योंकि पहाड़ पर जाने वाले पर्यटकों को शहर के भीतरी राज्य मार्गों से गुजरना पड़ता है,यदि शहर के बाहर बाहर प्रस्तावित यह रिंग रोड समय से बन पाती तो शायद हल्द्वानी के सैकड़ो वर्ष पुराने पेड़ों को काटना नहीं पड़ता एल,वह आज सुरक्षित होते।
जहां एक तरफ आज पर्यावरण विश्व के लिए चिंता का विषय बन गया है,करोड़ों रुपए कागजों की तरह वृक्ष बचाओ पेड़ लगाओ अभियान में सरकारें फूंक रही है और दूसरी तरफ खुलेआम पेड़ों की हत्या विकास के नंगे नाम के नाम पर स्वयं सरकार कर रही है इन पहलुओं को गंभीरता से सोचने की आवश्यकता हैं।
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