देहरादून। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) को करारी हार दी। 70 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि आप केवल 22 सीटों पर सिमट गई। इस चुनाव में उत्तराखंड मूल के भाजपा के दो विधायकों ने भी शानदार जीत दर्ज की, जिससे उत्तराखंड की राजनीतिक पहचान को और मजबूती मिली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की। इस चुनाव में आप के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मंत्री सत्येंद्र जैन जैसे बड़े नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत में उत्तराखंड के दो विधायकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तराखंड मूल के विधायकों ने बनाया रिकॉर्ड
1. मोहन सिंह बिष्ट (मुस्तफाबाद सीट)
अल्मोड़ा जिले के अजोली (मिरोली) गांव के मूल निवासी मोहन सिंह बिष्ट ने मुस्तफाबाद सीट से छठी बार विधायक बनने का रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने आप के प्रत्याशी आदिल खान को 17,518 वोटों के अंतर से हराया। मुस्तफाबाद सीट, जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, में मोहन सिंह बिष्ट को 85,215 वोट मिले, जबकि आदिल खान को 67,657 वोट मिले। कांग्रेस के अली मेहंदी को केवल 11,763 वोट ही मिल पाए।
2. रविंद्र सिंह नेगी (पटपड़गंज सीट)
अल्मोड़ा जिले के जयंती निवासी रविंद्र सिंह नेगी ने पटपड़गंज सीट से आप के प्रत्याशी अवध ओझा को करीब 28,000 वोटों के अंतर से हराया। रविंद्र सिंह नेगी को इस चुनाव में 74,000 वोट मिले। पिछले चुनाव में भी उन्होंने आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन इस बार उन्होंने जीत हासिल की।
उत्तराखंड की राजनीतिक पहचान को मिली मजबूती
दिल्ली विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड मूल के इन दोनों विधायकों की जीत ने उत्तराखंड की राजनीतिक पहचान को और मजबूत किया है। चुनाव से पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी दिल्ली में जमकर प्रचार किया था, जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। उत्तराखंड मूल के इन विधायकों की जीत ने भाजपा की स्थिति को और मजबूत बनाया है और आप को बड़ा झटका दिया है।
इस चुनाव में उत्तराखंड के इन दोनों विधायकों ने न केवल अपने क्षेत्र में बल्कि पूरे दिल्ली में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी यह जीत उत्तराखंड की राजनीतिक ताकत को दर्शाती है और भविष्य में भी उत्तराखंड के नेताओं के लिए नई संभावनाएं खोलती है।