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गैरसैंण: जब पूरा उत्तराखंड होली के रंग में सराबोर है, तब गैरसैंण के रामलीला मैदान में तीन आंदोलनकारी अपनी अस्मिता और हक की लड़ाई के लिए आमरण अनशन पर डटे हुए हैं। पूर्व सैनिक भुवन सिंह कठायत का आज चौथा दिन है, जबकि युवा आंदोलनकारी कार्तिक उपाध्याय और कुसुम लता बौड़ाई बीते दो दिनों से भूख हड़ताल पर हैं।
आंदोलनकारियों ने साफ ऐलान कर दिया है कि यदि सरकार तीन दिनों के भीतर समाधान नहीं निकालती, तो वे अपने परिवारों और समाज के लोगों को गैरसैंण बुलाकर आंदोलन को और बड़ा करेंगे। अगर तब भी सरकार ने उनकी मांगों को अनदेखा किया, तो वे अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
सरकार की चुप्पी पर बढ़ता आक्रोश
अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे आंदोलनकारियों और उनके समर्थकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। आंदोलनकारियों ने साफ कहा—
“यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं, पूरे पर्वतीय समाज की अस्मिता की है। यदि सरकार जल्द कोई निर्णय नहीं लेती, तो यह आंदोलन और व्यापक होगा।”
प्रदेशभर में गूंज रहा गैरसैंण का आंदोलन
गैरसैंण से उठी यह चिंगारी अब पूरे उत्तराखंड में फैल रही है। चौखुटिया, कर्णप्रयाग, रानीखेत, बागेश्वर, श्रीनगर और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों से लोग लगातार गैरसैंण पहुंचकर आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। #SaveGairsain, #UttarakhandAandolan जैसे हैशटैग के साथ लोग सरकार से जवाब मांग रहे हैं।
क्या सरकार अपनी चुप्पी तोड़ेगी या जनसंग्राम को न्योता देगी?
गैरसैंण को उत्तराखंड के संघर्ष और पहाड़ी अस्मिता का प्रतीक माना जाता है। इस आंदोलन की आंच अब तेज होती जा रही है।
अब सवाल यह है—
➡️ क्या सरकार अपनी चुप्पी तोड़ेगी और समाधान निकालेगी?
➡️ या फिर यह आंदोलन एक बड़े जनसंग्राम का रूप ले लेगा?
राज्य सरकार के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। उत्तराखंड की जनता अब निर्णायक कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रही है।
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