हल्द्वानी। किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष और किसान मकान बचाओ संघर्ष समिति के संस्थापक किसानपुत्र कार्तिक उपाध्याय ने शिक्षा के मौलिक अधिकार को लेकर सरकार और प्रशासन पर करारा हमला बोला है। उन्होंने खंड शिक्षा अधिकारी हल्द्वानी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत सरकार के शिक्षा मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उत्तराखंड सरकार के तमाम जिम्मेदार अधिकारियों को एक तीखा पत्र भेजा है, जिसमें सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति पर गंभीर चिंता जताई गई है।
उपाध्याय ने अपने गांव के राजकीय इंटर कॉलेज हरिपुर जमन सिंह का उदाहरण देते हुए लिखा है कि विद्यालय में कुर्सी, मेज और भवन जैसी मूलभूत सुविधाएं न होने के कारण बच्चों को प्रवेश देने से मना किया जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि 2025 में भी भारत में शिक्षा का मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं है, तो क्या संविधान से इसे हटाने पर राष्ट्रव्यापी बहस नहीं होनी चाहिए?
उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकार का अर्थ है कि कोई भी नागरिक इससे वंचित नहीं रह सकता, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। उपाध्याय ने चेतावनी दी कि यदि सरकारें शिक्षा के इस अधिकार की रक्षा नहीं कर सकतीं, तो संविधान से इसे हटा देना चाहिए या फिर व्यवस्था सुधारने के ठोस कदम उठाए जाएं।
पत्र में उपाध्याय ने यह भी सुझाव दिया कि अगर सरकार आर्थिक तंगी का बहाना बना रही है, तो अनावश्यक एसी और गाड़ियों को नीलाम कर शिक्षा के लिए धन जुटाया जाए। साथ ही उन्होंने पर्वतीय जिलों की शिक्षा व्यवस्था को लेकर भी गहरी चिंता व्यक्त की है, जहां संसाधनों की स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
कार्तिक उपाध्याय ने अफसरशाही पर भी जमकर निशाना साधा और कहा कि अधिकारी दफ्तरों में बैठकर फाइलों से शिक्षा विभाग चला रहे हैं, जबकि जमीनी स्तर पर स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। उन्होंने मांग की है कि जिम्मेदार अधिकारी यह बताएं कि उन्होंने कितनी बार स्कूल का निरीक्षण किया और समस्याओं को दूर करने के लिए क्या प्रयास किए।
उपाध्याय ने साफ किया है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाएंगे। इसी क्रम में उन्होंने अपने पत्र की प्रतिलिपि राष्ट्रपति, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को भी भेजी है।