तालाबों और पोखरों पर हो रहे अतिक्रमण को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सक्त निर्देश दिए है कहा कि सभी तालाबों और पोखरो पर से अतिक्रमण हटा दिया जाए व तालाबों को वर्ष 1951 की स्थिति में लायें।
हाई कोर्ट ने कुंवर पाल सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तराखण्ड पीआईएल संख्या 65/2011 में तालाब और पोखरों के अतिक्रमण वाले मामले में राज्य सरकार को सख्त आदेश दिए थे कि सभी तालाबों को साल 1951 की स्थिति में लाया जाए।
हरिद्वार रूड़की निवासी कुंवर पाल सिंह ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति को एक पत्र लिखा था। जिस पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए उस पत्र को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था। याचिका में मांग की गई थी कि रुड़की के भगवानपुर के गांव में जलमग्न भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है।
जिस पर हाई कोर्ट ने राज्य में सभी पुराने तालाबों और पोखरों से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिये थे। इस पर राज्य सरकार को हाई कोर्ट द्वारा राज्य में सभी पुराने तालाबों और पोखरों से अतिक्रमण हटाने के आदेश को व्यवहार में परिणित करना है।
हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपालसिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया हुआ है कि सभी तालाबों को 6 माह के भीतर वर्ष 1951 की स्थिति में लाया जाए। इसके साथ ही हाईकोर्ट की खण्डपीठ ने सरकार को निर्देश देते हुए कहा था कि तालाब और पोखरों के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए जो उन पर कार्य करे।
इससे पूर्व 2001 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में भी तालाबों/जोहड़ की भूमि के विषय में स्पष्ट आदेश हैं। अब शासन-प्रशासन का कार्य हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों का अनुपालन कराए और धार्मिक स्थल से मनीराम जोहड़ को पुरूषोत्तम विहार कब्जे से मुक्त कराए।
हम तथ्य आधारित बात कर रहें हैं जिनके राजस्व अभिलेखों की प्रति आप पोस्ट में देख सकते हैं। 1359 की फसली में आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि ग्राम शेखुपुरा कनखल के खसरा संख्या- 161 व खसरा संख्या-162 में खेती -सिंघाड़ा , किस्म वाली श्रेणी में जोहड़ जलमग्न भूमि अंकित हैं। ऐसे में सवाल उठाता हैं कि नियम ,कायदे और कानून को दरकिनार कर जोहड़ का आस्तित्व संतों ने और सफेदपोश भूमाफियाओं ने कैसे मिटा दिया ।