देहरादून: हरदा (Harish Singh rawat) बोले मदरसे जिन उलेमाओं ने स्थापित किए हैं। हमें उनकी समझ और राष्ट्रभक्ति पर विश्वास करना चाहिए। वो अपना इम्तिहान देश की आजादी के आंदोलन में और देश के विभाजन के वक्त दे चुके हैं। मदरसों की तालीम का उद्देश्य दुनियावी तालीम के साथ दीनी तालीम भी है।
हरदा (Harish Singh rawat) बोले जिस प्रकार हमें अपनी पूजा पद्धति के लिए अपने धर्म की मान्यताओं की स्थापना के लिए एक विशिष्ट ज्ञान और विशिष्ट वर्ग की आवश्यकता है, उसी प्रकार दूसरे धर्मों को भी है। हम उसमें हस्तक्षेप कर धर्मनिरपेक्षता की धुरी को कमजोर करेंगे। हमें यह तथ्य नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्र निर्माण की धुरी धर्मनिरपेक्षता के लूब्रीकेंट पर ही सहजता से घूमती है और ऊंची ऊंचाइयों की ओर बढ़ती है।
साथ ही उन्होंने कहा कि हम कोई ऐसा काम न करें जिससे किसी धर्म के लोगों को लगे कि हमारी आंतरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप किया जा रहा है। किस धर्म में कब क्या परिवर्तन होना है, यह उसके अंदर से स्वयं स्वर उठते हैं और समझ विकसित होती है। ये स्वर ही थे जिन्होंने तीन तलाक को लेकर आंतरिक विरोध को शांत किया और आज दुनिया के कई भागों में हिजाब की अनिवार्यता पर जो विरोध के स्वर प्रस्फुटित हो रहे हैं, वह इसका जीवांत प्रमाण है और यह स्थिति सभी धर्मों में पैदा हुई है। यह आंतरिक मंथन हर धर्म के अंदर होता है क्योंकि परिवर्तन के साथ हर धर्म को चलना पड़ता है।