Demonetization:भारत में फर्जी नोट कहा से आते है।जानिए इस खबर में
अर्थव्यवस्था को कैसे खराब करते हैं नकली नोट।
फर्जी करेंसी को खत्म करने के लिए किया गया था विमुद्रीकरण.
भारत में फर्जी करेंसी 2020-21 के बाद फिर तेजी से बढ़ी है।
नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते आते हैं भारत में फर्जी नोट।
2016 में विमुद्रीकरण (Demonetization) का मुख्य मकसद नकली नोट और उन्हें बनाने वालों पर वार करना ही था. फर्जी भारतीय करेंसी नोट की सबसे ज्यादा छपाई पाकिस्तान में की जाती है. इसका इस्तेमाल भी भारत की अर्थव्यव्सथा बिगाड़ने और आतंकवाद को बढ़ावा देने में किया जाता है।
सरकार व आरबीआई की अनुमति के बगैर भारतीय करेंसी नोटों की छपाई करना अपराध है और इसके खिलाफ सख्त प्रावधान भी हैं. फर्जी नोट किसी भी मजबूत देख की अर्थव्यवस्था को धाराशायी करने की ताकत रखते हैं. इसका इस्तेमाल अक्सर दुश्मन देशों द्वारा किया जाता है इसलिए इसे वित्तीय आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाता है. लेकिन कई लोगों के दिमाग में एक सवाल यह रहता है कि आखिर फर्जी नोटों से होता क्या है कि एक देश की अर्थव्यवस्था ही खतरे में पड़ जाती है.
जाली भारतीय नोटों को FICN या फेक इंडियन करेंसी नोट्स कहा जाता है. सबसे अधिक FICN की प्रिंटिंग पाकिस्तान में की जाती है. इसे फिर सीधे भारत-पाकिस्तान सीमा से या अन्य पड़ोसी मुल्कों के रास्ते भारत में भेजा जाता है. जानकारों के अनुसार, बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते बड़ी मात्रा में फर्जी करेंसी नोट भारत पहुंचते हैं. फर्जी नोट का सीधा और दोगुना फायदा आतंकी संगठनों को पहुंचता है।
महंगाई और अर्थव्यवस्था
आरबीआई बाजार में मुद्रा प्रवाह का संतुलन बनाए रखने के लिए एक तय सीमा में ही नोटों की छपाई करता है. सीमा से अधिक नोट बाजार में उतर जाने से लोगों के हाथ में पैसा ज्यादा आ जाता है. इससे वस्तुओं और सेवाओं की अप्रत्याशित तरीके से मांग बढ़ती है. इसका फिर उल्टा असर शुरू होता है. मांग अचानक बढ़ने और आपूर्ति पहले जितनी ही रहने से बाजार में सामान की कमी होने लगती है और जो थोड़ा-बहुत सामान मौजूद है उसकी कीमत आसमान छूने लगती है. यहां फिर पैसे की वैल्यू तेजी से गिरने लगती है और अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाती है. इससे आतंकी संगठनों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं।
फंडिंग
फर्जी नोटों के जरिए ही आंतकी संगठनों को पैसे दिए जाते हैं. इन्हीं पैसों का इस्तेमाल कर असली करेंसी खरीदते हैं या फिर फर्जी करेंसी से ही अपनी जरूरत के सामानों की खरीदारी करते हैं. फिर उनका इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में किया जाता है. फर्जी करेंसी को आर्थिक आतंकवाद के रूप में देखा जाता है।
फर्जी करेंसी से लड़ाई के लिए उठाए गए कदम
2016 में विमुद्रीकरण करने का एक बहुत बड़ा कारण यही था. भारत ने एनआईए (NIA) में एक टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी सेल का भी गठन किया था. प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो के अनुसार, अलग-अलग राज्यों के पुलिस बलों को वित्तीय आतंकवाद से लड़ाई के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. फेक करेंसी के मामले में केंद्र व राज्य की एजेंसियां एक-दूसरे के सहयोग के साथ काम करती हैं. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर चाक चौबंद बढ़ा दिया गया है. बांग्लादेश और भारत के बीच इसे रोकने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं. यहां तक की नेपाल और बांग्लादेश के पुलिस अधिकारियों को इसके लिए ट्रेनिंग भी दी गई है।