Badrinath Dham की परंपराएं न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी हैं, बल्कि यह सभी जीवों के प्रति सम्मान और समर्पण की अद्भुत मिसाल भी पेश करती हैं। यहां सदियों से एक विशेष परंपरा निभाई जा रही है, जिसके अंतर्गत भगवान बदरी नारायण को दोपहर का राजभोग (Royal Meal) अर्पित करने से पहले कॉकरोच (Cockroaches), गाय और पक्षियों को भोग लगाया जाता है।
सदियों पुरानी परंपरा: पहले जीव-जंतुओं को तृप्त करना (Respect for All Living Beings)
बद्रीनाथ धाम में यह परंपरा दर्शाती है कि ईश्वर के लिए सभी प्राणी समान हैं। पूर्व धर्माधिकारी (Religious Head) भुवनचंद्र उनियाल के अनुसार, भगवान नारायण राजभोग से पहले संसार के सभी प्राणियों को तृप्त देखना चाहते हैं। इस परंपरा के अनुसार तप्तकुंड के पास स्थित गरुड़ कुटी (Garud Kuti) में स्थानीय भाषा में ‘झोडू सांगला’ कहे जाने वाले कॉकरोचों के लिए चावल का भोग रखा जाता है।
प्रत्येक दिवस की पूजा व्यवस्था (Daily Ritual Structure)
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान नारायण को प्रतिदिन निम्न प्रकार से भोग लगाया जाता है:
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प्रभात काल (Morning) – पंचमेवा भोग (Five Dry Fruits Offering)
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अभिषेक के बाद (Post-Abhishek) – बाल भोग (Light Meal for Lord)
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पितरों के लिए (For Ancestors) – पिंड प्रसाद (Pind Prasad)
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दोपहर (Afternoon) – राजभोग में केसर चावल, दाल-चावल और लड्डू
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सांय काल (Evening) – दूध भात (Milk-Rice Meal)
दोपहर के राजभोग से पहले गाय, पक्षियों और कॉकरोचों को मंदिर परिसर और तप्तकुंड के पास भोग अर्पित किया जाता है।
मान्यता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Mythology & Historical Context)
ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) ने आठवीं शताब्दी में बद्रीनाथ धाम की स्थापना की थी। उन्होंने तप्तकुंड के समीप भगवान विष्णु की पद्मासन शिला को गरुड़ शिला के नीचे स्थापित किया था, जहां कॉकरोच निवास करते हैं। तभी से यह परंपरा चलती आ रही है कि भगवान नारायण को भोग अर्पण करने से पहले इन जीवों को तृप्त किया जाए।
आध्यात्मिकता और सह-अस्तित्व का संदेश (Spiritual Message of Co-Existence)
बद्रीनाथ धाम की यह अनोखी परंपरा न केवल धार्मिक अनुशासन का पालन है, बल्कि यह मनुष्य और अन्य जीवों के बीच Co-Existence (सह-अस्तित्व) के गहरे संदेश को भी उजागर करती है। जब अधिकांश लोग रसोई में कॉकरोच देखने पर उन्हें हटाने के उपाय ढूंढते हैं, वहीं भगवान नारायण पहले इन्हें भोजन कराते हैं – यह परंपरा मानवता और समर्पण की उच्चतम भावना को दर्शाती है।