ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
उत्तराखंड में मुख्य रूप से पलायन का एक कारण पहाड़ों पर बने शिक्षा के संस्थाओं में अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा का न होना भी हैं, यूं तो समय समय पर पलायन रोकने की बातें होती हैं लेकिन पलायन के प्रमुख कारणों पर गंभीरता से कार्य राज्य में कभी नहीं होता आया।
बात राज्य की उन कुर्सियों की करें जिनका काम होता हैं प्रदेश के मुखिया द्वारा अपनी जनता के लिए की गई घोषणाओं को धरातल पर क्रियान्वित करना लेकिन राज्य में अधिकारी वर्ग सत्ता के सामने कितना प्रभावशाली हैं यह सभी जानते हैं।
मुख्यमंत्री द्वारा पिछले वर्ष देवीधुरा स्तिथि आदर्श महाविद्यालय में एम को कक्षा का संचालन करने की घोषणा की गई थी परंतु अधिकारियों की असंवेदनशीलता के चलते अबतक कक्षाओं का संचालन नहीं हो सका हैं,जबकि यहां स्टाफ की कोई कमी नहीं हैं।
यहां तैनात प्रधानाचार्य पर ग्रामीण आरोप लगा रहें हैं की मुख्यमंत्री की स्वयं घोषणा करने के बाद और पूरा स्टाफ होने के बाद भी प्रधानाचार्य ऑनलाइन कक्षाओं पर जोर से रहें हैं और अबतक उनकी निष्क्रियता के कारण एम की कक्षा संचालित नहीं हो सकी हैं,ग्रामीणों ने प्रधानाचार्य के स्थानांतरण के लिए पत्र भी प्रेषित किया हैं।
स्थानीय निवासी युवा सूरज विश्वकर्मा ने कहा की वह स्वयं अच्छी उच्च शिक्षा के लिए गांव छोड़कर हल्द्वानी आएं हुए हैं,वह जानते हैं पहाड़ों पर युवाओं को अपने सपने पूरा करने के लिए शिक्षा के लिए उपयुक्त पहाड़ों का वातावरण छोड़कर मजबूरन शहर आना होता हैं,यह भी प्रत्यक्ष पलायन ही हैं अधिकारी जब मुख्यमंत्रियों की बात नही सुनेंगे तो कैसे शिक्षा के हालात बदलेंगे और कैसे युवा पलायन रुकेगा।
वही देवेंद्र भट्ट जो की निवर्तमान छात्र संघ अध्यक्ष हैं वह कहते हैं
“जुलाई 2023 में करवाई गई। घोषणा के पश्चात महाविद्यालय में सात दिवसीय अनशन किया गया और उसके पश्चात घोषणाओं पर कार्य भी हुआ है परंतु महाविद्यालय एवं विश्वविध्यालय प्रशासन के लचर रवेये के चलते इसमें अवरोध उत्पन्न हुए हैं जिसका खामियाजा गरीब छात्र छात्राओं को उठाना पड़ रहा है”!
छात्रों के मुद्दो को प्रमुखता से उठाते आएं और राज्य ने छात्र हितों के लिए होने वाले आंदोलन में शामिल दीपक बिष्ट कहते हैं उत्तराखंड राज्य को आंदोलनों की आदत लग चुकी हैं,या यूं कहें अधिकारियों और नेताओं ने इस राज्य को धरना प्रदेश बना डाला हैं,मुखिया की ही घोषणाओं का धरातल में यह हाल हैं तो मंत्रियों और विधायकों को तो क्या ही इस प्रदेश में चलती होगी,दीपक ने कहा जल्द अगर कक्षाओं का संचालन नहीं होता हैं तो देवीधुरा की पवित्र भूमि से राज्य सरकार एक और आंदोलन देखेगी।
वाकई मुख्यमंत्री की घोषणा धरातल पर सिर्फ इसलिए नहीं उतर पा रही की महाविद्यालय का एक प्राचार्य निष्क्रिय हैं तो बड़ा सवाल इससे ऊपर की सभी कुर्सियों सहित सचिवालय और मुख्य सचिव की कुर्सी से भी बनता हैं,की राज्य के भीतर शिक्षा के अधिकार का हनन क्यों?
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