पूर्वोत्तर राज्य के मिजोरम यूनिवर्सिटी आइजोल में वानिकी विभाग मिजोरम यूनिवर्सिटी एवं इंडियन इकोलॉजिकल सोसायटी के संयुक्त कार्यक्रम के तहत प्रस्तावित थीम ‘बदलते परिवेश में जैव विविधता, जैव भू-रसायन और पारिस्थितिक तंत्र की सततता’ पर 14-16 जून तक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का मुख्य उद्देश्य विज्ञान के विभिन्न शोध कार्यों को एक मंच पर रखना एवं वातावरणीय घटनाओं से हो रहे बदलाव पर वैज्ञानिक परिचर्चा के माध्यम से समाधान निकालना था। सेमिनार में विभिन्न देशों एवं भारत के विभिन्न राज्यों से आए वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर एवं विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शोध करने वाले शोधार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। इसमें विभिन्न थीमों दके माध्यम से जैव विविधता को परिचर्चित किया गया। इसी क्रम मे स्थानीय जड़ी-बूटियों के पारंपरिक ज्ञान एवं जैव विविधता संरक्षण थीम के अंतर्गत डॉo प्रवीन जोशी का चयन सर्वोच्च प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया। यह पुरस्कार प्रोफ़ेसर पीसी राय द्वारा उन्हें प्रदान किया गया।
डॉo जोशी ने हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली बहुपयोगी पादप प्रजाति *चन्द्रा* के पारंपरिक ज्ञान एवं उससे हिमालय क्षेत्र के लोगों द्वारा जीविकोपार्जन के अवसर के बारे में अपना शोध प्रस्तुत किया। डॉo जोशी द्वारा अभी तक कई अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अपने शोध कार्यों को प्रकाशित किया जा चुका है। इसके साथ ही सीएसआईआर नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित विज्ञान प्रगति में भी प्रतिवर्ष कई लेख प्रकाशित किए जाते हैं। यह लेख हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले विभिन्न औषधीय एवं सगंध पादपों के बारे में जानकारी महत्वपूर्ण देते हैं। इन लेखों में पंया, सामोया, टिमरू, तिमला, वज्रदंती, हर्बल टी एवं उत्तराखंड के प्रमुख बुग्यालों की स्थिति एवं उनका संरक्षण आदि शामिल हैं। इन लेखों के माध्यम से उच्च हिमालय की प्रजातियों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार पहचान भी मिल रही है।
डॉo जोशी हाल में राइका गोर्ती लस्या, जखोली जनपद रुद्रप्रयाग में बतौर प्रवक्ता जीव विज्ञान (अoशिo) के रूप में विगत 2015 से अध्यापन कार्य कर रहे हैं। इस उपलब्धि हेतु उन्होंने अपने शोध सहयोगी डॉo प्रेम प्रकाश उपनिदेशक उच्च शिक्षा उत्तराखंड एवं डॉo विजयकांत पुरोहित एसोसिएट प्रोफेसर गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर, कार्यक्रम के मुख्य आयोजनकर्ता प्रोफ़ेसर एसके त्रिपाठी एवं उनकी समस्त टीम का आभार व्यक्त किया।
उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र बहूपयोगी जडी-बूटियों का अपार भंडार है। इनके वास्तविक महत्व एवं उपयोग को पहचान दिलाना आवश्यक है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्र-पत्रिकाएं एवं संगोष्ठीयाँ इसके लिए उचित माध्यम हैं। इनको रोजगार से भी जोड़ा जा सकता है बशर्ते प्रकृति से सीमित दोहन हो एवं संरक्षण के भरपूर प्रयास होने अति आवश्यक हैं।