ज्योतिषाचार्य सतीश थपलियाल
टपकेश्वर महादेव
देहरादून। फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर ग्रहण और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभाव अध्ययन किया जाता है। ज्योति शब्द का योग अर्थ है गृह तथा नक्षत्र से संबंध ( सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का ही अर्थ लेते हैं।
वैदिक ज्योतिष में सबसे शक्तिशाली ग्रह सूर्य, जो कि सौरमंडल का केंद्र है आत: यह सब ग्रहों को नियंत्रित करता है। यह हमारे जीवन, शक्ति या जीवन शक्ति का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सूर्य का बल आपकी शक्तियों को बढ़ाता है क्योंकि यह अन्य सभी ग्रहों को प्रकाशित करता है।
जानिए कब क्या रत्न पहनें
माणिक
सूर्य की मजबूती के लिए तीन रति से ज्यादा वजन का माणिक रत्न पहनना चाहिए। रत्न को कम से कम पांच रत्ती की सोने की अंगूठी में जुड़वाएं। ध्यान रहे माणिक का असर केवल 4 वर्षों तक ही रहता है।
मोती
चंद्रमा की शांति के लिए चार रती का मोती पहनना चाहिए। इसे सोने या चांदी की अंगूठी में जड़वा कर पहने, अंगूठी का वजन 4 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए।
मूंगा
मंगल को शांत करने के लिए कम से कम 8 रती का मूंगा पहनना चाहिए, मूंगा को न्यूनतम छह रति की अंगूठी में जड़वांए।
जड़ा हुआ मंगा 3 साल तक ही प्रभावित होता है।
नीलम
जिसका शनि भारी है उसे चार रती या इससे अधिक का नीलम पहनना चाहिए। इस रत्न को हमेशा लोहे की अंगूठी में धारण करें। इसका अधिकतम असर 5 सालों तक रहता है।
पन्ना
जिसका बुध ग्रह प्रभावी है तो इसकी शांति के लिए कम से कम 6 रत्ती का पन्ना पहने। सोने की अंगूठी में जड़ा हुआ यह पन्ना अधिकतम 3 साल तक ही प्रभावित रहता है।
पुखराज
बृहस्पति की शांति के लिए कम से कम चार रती का पुखराज ग्रहण करना चाहिए। इसे सोने या चांदी की अंगूठी में जड़वा कर पहनें। इसका प्रभाव भी करीब 4 सालों तक रहता है।
हीरा
हीरा एक अमूल्य रत्न है। जिसका शुक्र ग्रह कमजोर हो तो वह उसकी मजबूती के लिए साडे सात रति हीरा सोने में धारण करें।
इसका असर 5 सालों तक रहता है।
गोमेद
राहु की शांति के लिए कम से कम चार रत्ती का यह रत्न धारण करें। चार रत्ती से ऊपर का अष्टधातु या चांदी की अंगूठी में धारण करें। इसका प्रभाव 3 साल तक रहता है, जिसे 3 साल बाद बदल दिया जाना चाहिए।
लहसुनिया
केतु ग्रह की शांति के लिए कम से कम चार रत्ती का लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए।
इस रत्न को अष्टधातु या लोहे की अंगूठी में मनवा कर पहनना चाहिए। इसे 3 साल बाद बदल लेना चाहिए।