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कोर्ट में सरकारी पक्ष कमजोर होने की बड़ी वजह – बिना आधार के सहमति
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने न्यायिक मामलों (Judicial Matters) में शासकीय अधिवक्ताओं (Government Advocates) की कार्यशैली को लेकर सख्ती दिखाई है। कई मामलों में यह पाया गया कि शासकीय अधिवक्ता कोर्ट में ऐसे तथ्यों पर सहमति (Consent) दे देते हैं, जो न तो शपथ-पत्र (Affidavit) का हिस्सा होते हैं और न ही सरकार की तरफ से उन्हें इसकी अनुमति होती है। नतीजतन, केस कमजोर हो जाता है और सरकार की हार (Government Defeat) तक हो जाती है।
मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने जताई आपत्ति, नई व्यवस्था लागू होगी
मुख्य सचिव आनंद वर्धन की अध्यक्षता में हाल ही में हुई सचिव समिति (Secretaries Committee) की बैठक में इस विषय पर गंभीर चर्चा हुई। बैठक में सामने आया कि शासकीय अधिवक्ता बिना लिखित निर्देशों के कोर्ट में सहमति जता देते हैं, जिससे केस पर बुरा असर पड़ता है।
अब ऐसी स्थिति में अधिवक्ता को स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने किन कारणों और तथ्यों के आधार पर सहमति दी। यह जवाबदेही तय करने की दिशा में सरकार का अहम कदम माना जा रहा है।
ऑनलाइन सिस्टम से होगी मॉनिटरिंग, पूरी प्रक्रिया होगी ट्रैक
सचिव समिति की बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि मुख्य स्थायी अधिवक्ता कार्यालय (Office of Chief Standing Counsel) में एक नया ऑनलाइन सिस्टम विकसित किया जाएगा। इसमें मुकदमे की शुरुआत से लेकर अंतिम निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया डिजिटली रिकॉर्ड होगी।
इस डिजिटल सिस्टम में शपथ-पत्र (Counter Affidavit), पत्राचार (Correspondence) और उच्च न्यायालय के निर्णय (High Court Judgments) आदि को सुरक्षित किया जाएगा। यह व्यवस्था फौजदारी (Criminal) और सिविल (Civil) दोनों प्रकार के मामलों पर लागू होगी।