उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वनाग्नि मामले में P.C.C.F. को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 2021 के वनाग्नि संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (P.C.C.F.) को 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने उनसे वनाग्नि रोकने के लिए की गई तैयारियों और 2021 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन की जानकारी मांगी है।
मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र जे. की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हाल ही में चकराता, देहरादून और पौड़ी में लगी वनाग्नि का संज्ञान लेते हुए इस मामले को पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। कोर्ट ने P.C.C.F. से यह भी पूछा कि 2021 में जारी किए गए दिशा-निर्देशों का कितना पालन हुआ है। मामले की अगली सुनवाई 19 सितंबर को होनी तय हुई है।
आज की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि इससे संबंधित एक विशेष अपील सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए राज्य सरकार को वर्तमान स्थिति पेश करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाए। हालांकि, न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मामला अलग है और सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले से इसका कोई संबंध नहीं है।
यह मामला कोर्ट ने कोविड-19 के दौरान स्वतः संज्ञान लेते हुए शुरू किया था। पहले भी कोर्ट ने राज्य सरकार को वन विभाग में 65% खाली पदों को 6 महीने में भरने, ग्राम पंचायतों को मजबूत करने और साल भर जंगलों की निगरानी करने के लिए शपथपत्र पेश करने का आदेश दिया था।
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और राजीव बिष्ट ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश के कई जंगल अभी भी आग की चपेट में हैं और राज्य सरकार इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2016 में इसी कोर्ट ने जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइडलाइन जारी की थी, लेकिन उसका पालन ठीक से नहीं किया गया है।