देहरादून : उत्तराखंड में अवैध खनन को लेकर राजनीति गरमाती जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी ही पार्टी की सरकार पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि, उनके कार्यकाल में हुए अवैध खनन का खुलासा भारत सरकार की एजेंसी कैग (CAG) पहले ही कर चुकी है।
कैग की मार्च 2023 में विधानसभा में पेश रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच उत्तराखंड में 37 लाख टन अवैध खनन हुआ, जिससे सरकार को 50 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। इस दौरान रिमोट सेंसिंग और जीआईएस अध्ययन के जरिए यह भी सामने आया कि कोरोना काल के दौरान भी अवैध खनन जारी रहा।
हाल ही में त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने खनन सचिव बृजेश कुमार संत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “शेर कुत्तों का शिकार नहीं करते।” उनकी यह टिप्पणी चर्चा का विषय बनी हुई है।
वहीं, मौजूदा धामी सरकार अवैध खनन पर सख्त नजर आ रही है। खनन सचिव ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में खनन से 875 करोड़ रुपये के राजस्व का लक्ष्य रखा गया था, जबकि अब तक 1025 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया जा चुका है। इसके अलावा, अवैध खनन पर कार्रवाई करते हुए 2176 मामलों में 74.22 करोड़ रुपये की वसूली की गई है। जबकि वर्ष 2020-21 में 2752 मामलों में महज 18.05 करोड़ रुपये की ही वसूली हुई थी।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में खनन माफियाओं की सक्रियता भी सवालों के घेरे में रही थी। उस दौरान उनके एक सलाहकार पर खनन माफियाओं से नजदीकियों के आरोप लगे थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह अक्सर माफियाओं के साथ पार्टियों में शामिल होते थे।
विशेष रूप से, त्रिवेंद्र सरकार के दौरान खनन पट्टों को लेकर भी अनियमितता सामने आई थी। उस समय गिनी-चुनी फाइलों को ही मंजूरी दी गई थी, जिससे अवैध खनन को बढ़ावा मिला और खनन सामग्री के दाम भी बढ़ गए। इसके उलट, धामी सरकार ने सत्ता संभालते ही 45 से अधिक खनन फाइलों को मंजूरी दी, जिससे वैध खनन को बढ़ावा मिला और अवैध खनन पर लगाम कसी गई।