फाइल आखिरी बार राम विलास यादव के कार्यालय में देखी गई थी
सचिवालय से गायब हुई 20 करोड़ रुपये के बीज प्रमाणीकरण और टैग घोटाले की फाइल अब फिर से तैयार कर ली गई है और इस पर SIT जांच गठित कर दी गई है। इस बात की जानकारी सूचना आयोग में एक अपील की सुनवाई के दौरान खुद शासन के अधिकारियों ने दी।
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में बताया गया कि यह फाइल उस वक्त गायब हुई थी जब पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ. राम विलास यादव कृषि विभाग में अपर सचिव के पद पर थे। यह वही अधिकारी हैं जिन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल भेजा जा चुका है।
RTI के बाद खुला मामला, फाइल 2020 से लापता
यह मामला तब सामने आया जब प्रयागराज के हरिशंकर पांडेय ने बीज प्रमाणीकरण से जुड़ी सूचनाएं पाने के लिए आरटीआई दाखिल की। सूचना न मिलने पर मामला सूचना आयोग पहुंचा। जांच में सामने आया कि बीज बिक्री और टैगिंग से जुड़ी मूल पत्रावली 14 अक्टूबर 2020 को अंतिम बार डॉ. यादव को भेजी गई थी और उसके बाद वह फाइल कभी नहीं मिली।
फाइल गायब, फिर पुलिस को दी सूचना — लेकिन जांच बंद
जब सूचना आयोग ने पूछा कि फाइल गायब होने के बाद क्या कदम उठाए गए, तो अधिकारियों ने बताया कि 4 जुलाई 2022 को पुलिस को इसकी जानकारी दी गई थी। लेकिन 16 अगस्त 2023 को पुलिस ने कह दिया कि फाइल का कोई सुराग नहीं मिला, और जांच बंद कर दी।
सूचना आयोग के दबाव पर फाइल दोबारा तैयार
सूचना आयोग के निर्देश पर गायब हुई फाइल को दोबारा तैयार करने के लिए एक समिति बनाई गई। अधिकारियों ने आयोग में यह भी बताया कि अब इस घोटाले की जांच के लिए SIT गठित कर दी गई है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं की गई है।
घपले की जांच पहले भी शुरू हुई थी
इस घोटाले को लेकर 2017 में तत्कालीन अपर सचिव डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने एक प्रारंभिक जांच की थी। जिसमें सामने आया था कि बीजों की बिक्री और टैगिंग में भारी अनियमितताएं हुई हैं। उन्होंने सुझाव दिया था कि इस मामले की पुलिस या SIT से जांच कराई जानी चाहिए, क्योंकि यह घोटाला व्यापक स्तर पर फैला है।
अनुभाग अधिकारी पर जुर्माना
सूचना आयोग ने यह भी पाया कि कृषि एवं विपणन अनुभाग के अनुभाग अधिकारी हरीश सिंह रावत ने आरटीआई में गुमराह करने की कोशिश की। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।