लैंसडौन विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक दिलीप रावत ने जंगलों में लग रही आग को लेकर सरकार की ओर से वन कर्मियों के निलंबन पर सवाल उठाए हैं।
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में विधायक का कहना है कि वन विभाग में निचले स्तर के कर्मी संसाधनों की कमी से जूझते नजर आते हैं। आग बुझाने के दौरान उनके पास न तो भोजन और न ही पानी की व्यवस्था होती है। ऐसे में निलंबन से पूर्व उनकी परेशानियों को समझना बेहद जरूरी है। देखा जाए कि धरातल पर अग्नि सुरक्षा के लिए पर्याप्त कर्मी नियुक्त हैं अथवा नहीं।
साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन कर्मियों के पास पर्याप्त संसाधन है अथवा नहीं।
विधायक का कहना है कि धरातल पर. उन्हें यह अनुभव हुआ है कि अग्नि सुरक्षा के लिए तैनात फायर वाचरों की संख्या सीमित होती है। धरातल पर तैनात किए जाने वाले फायर वाचरों को संसाधन भी नहीं दिए जाते।
पत्र में विधायक ने विभागीय कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि ब्रिटिश काल में जंगलों को आग से बचाने के लिए फायर लाइन बनाई जाती थी, जो अब कहीं नजर नहीं आती। कड़े वन कानूनों के कारण – आमजन भी वनों से दूर हो चला है। आमजन में यह भाव उत्पन्न हो गया है कि वन उनके नहीं हैं व वनों से उन्हें जनसुविधाएं नहीं मिल रही हैं, जबकि ब्रिटिश काल में वनों की सुरक्षा जन सहभागिता के आधार पर की जाती थी।
पत्र में विधायक दिलीप रावत का कहना है कि वनाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी व वन क्षेत्राधिकारियों का निरीक्षण चौकियों तक ही सीमित होता है। विभागीय अधिकारी अपने कक्षों में बैठकर वन विभाग की सेवा करते नजर आते हैं।
यदि वनों में लग रही आग पर उच्च स्तर के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होती तो अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का अवश्य बोध होता। पत्र में निचले स्तर के कर्मियों को निलंबित करने से पूर्व उनकी समस्याओं को समझ समस्याओं के निस्तारण पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया गया है।