पंकज कपूर ने कहा कि राज्य गठन के वर्षों बाद भी सरकारी अस्पतालों की हालत जस की तस बनी हुई है। स्वास्थ्य मंत्री आए दिन मीडिया में नए-नए दावे करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। हाल ही में चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के माध्यम से 34 एक्स-रे तकनीशियन नियुक्त किए गए हैं, लेकिन राजधानी देहरादून का प्रमुख दून अस्पताल अभी भी रेडियोथेरेपिस्ट जैसी जरूरी सुविधा से वंचित है। कैंसर रोगियों को उपचार नहीं, केवल परामर्श देकर लौटा दिया जाता है क्योंकि अस्पताल में रेडियोथेरेपी यूनिट ही नहीं है। मजबूरन मरीजों को ऋषिकेश एम्स या निजी अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ती है।
गर्भवती महिलाओं की स्थिति भी चिंताजनक है। अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए उन्हें घंटों लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। कई बार पूरे दिन इंतजार के बावजूद जांच नहीं हो पाती और डॉक्टर घर चले जाते हैं।
पार्टी प्रवक्ता ने आगे कहा कि उत्तराखंड के अधिकतर सरकारी अस्पताल अब केवल रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। न तो जरूरी दवाएं जन औषधि केंद्रों में उपलब्ध हैं और न ही नवजात शिशुओं को दिए जाने वाले टीकों की पर्याप्त आपूर्ति हो रही है। टीकों की कमी का असर खासकर एक से डेढ़ वर्ष के बच्चों पर देखा जा रहा है।
पार्टी ने कहा कि जल्द ही राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रसाद सेमवाल की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात करेगा। यदि इस गंभीर मसले पर मंत्री द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो पार्टी चरणबद्ध आंदोलन शुरू करने को बाध्य होगी।
दून अस्पताल में पार्किंग की भी गंभीर समस्या
पंकज कपूर ने यह भी बताया कि दून अस्पताल में पार्किंग व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। अस्पताल के OPD और इमरजेंसी ब्लॉक के बाहर सड़कों पर रोजाना सैकड़ों वाहन खड़े रहते हैं, जिससे जाम की स्थिति बनी रहती है। कई बार वाहन चोरी की घटनाएं भी सामने आई हैं। पार्किंग की व्यवस्था सुधारने के बजाय प्रशासन महिला अस्पताल का निर्माण कार्य तेजी से कर रहा है, जिससे भविष्य में यातायात की समस्याएं और बढ़ सकती हैं।