ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट: (रिपोर्ट सूरज विश्वकर्मा)
उत्तराखंड इन दोनों भीषण गर्मी से तप रहा है,न सिर्फ पर्यावरण से छेड़खानी की मार हम उत्तराखंडवासी झेल रहे हैं,बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कारण उत्तराखंड में कई पुराने जल स्रोत सूख चुके हैं,नदियों में पानी बहुत कम है।
उत्तराखंड में पहाड़ों पर कई वर्षों बाद पहली बार ऐसा देखने को मिला है,यह तो है प्रकृति की मार
लेकिन चंपावत जिले के विकासखंड पाटी में पढ़ने वाले एक गांव पिपलढ़ींग के ग्रामवासी और उनके नल जल बिन प्यासे हैं,उत्तराखंड के एक चिंतनशील कवि गिरीश तिवारी गिर्दा ने अपनी एक कविता की पंक्तियों में कहा था कि मछली बिना जल के प्यासी है लेकिन नदियों में भरपूर पानी है।
पिपलढ़ींग के हालात भी कुछ ऐसे हैं वहां के स्रोतों में पानी तो है,लेकिन लोगों के प्यासे रहने के कारण है जल संस्थान से जुड़े हुए जिम्मेदार अधिकारी और काम करने वाले जल संस्थान के ठेकेदार
गांव में पाइपलाइन के लिए भरपूर बजट विभाग के पास बहुत पहले ही आ चुका,काम पिछले वर्ष ही पूरा हो जाना था लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ।
इस बारे में जब हमने ठेकेदार से बात करी तो अब उसका कहना है कि आने वाले 15 तारीख तक काम पूरा कर देगा लेकिन उसने बताया कि गांव में पानी पिछले वर्ष ही पहुंच जाता लेकिन अधिकारी ऐसा चाहते ही नहीं थे इससे पूर्व में जो जेई पंत वहां थे वह दिन भर शराब पीकर ऑफिस में पड़े रहते थे वह कोई काम नहीं करते थे,ठेकेदार ने यह भी बताया कि उन्होंने समय से पैसा दिया होता तो इस गर्मी में ग्रामीण परेशान ना होते,वही जब इस संदर्भ में हमने अधिकारी को संपर्क करने की कोशिश की तो उनका फोन नहीं लगा।
अब सवाल यह है कि राज्य उत्तर प्रदेश से अलग जिन कर्म से किया क्या वह आज पूरा हो पाया,आखिर ऐसे अधिकारियों और ठेकेदारों पर कार्यवाही कौन करें,क्या राज्य के निवासियों के प्रति शासन या प्रशासन कोई गंभीर हैं।
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