पीसीएस की तैयारी कर रहें युवा पियूष जोशी ने खड़े किए यूसीसी कानून पर मूल निवास को लेकर सवाल
ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
तो बजाओ ताली, क्योंकि अब एक साल उत्तराखंड में रहकर या फिर किसी सरकारी योजना का लाभ लेकर आप बन सकते हैं उत्तराखंड के निवासी।
मूल निवास 1950 को भू कानून की मांग करने वालों की मांगों पर सरकार ने मारा करारा तमाशा।
उत्तराखंड में 1 साल रहने वाला या फिर किसी भी सरकारी योजना का एक बार लाभ उत्तराखंड में लेने वाला कहलाएगा उत्तराखंड का निवासी।
समान नागरिक संहिता विधेयक में स्पष्ट की उत्तराखंड के निवासी की परिभाषा।
बीते दिनों अपने जल जंगल जमीन की लड़ाई को लेकर व उत्तराखंड में मूल निवास 1950 को भू कानून की मांग को लेकर लगातार रैलियां की जा रही थी। इन्हीं रैलियो के बीच उत्तराखंड में गुपचुप समान नागरिक संहिता का विधायक राज्य की विधानसभा से पास हो गया ।
राज्य की विधानसभा से विधायक पास होने पर जहां एक और हर्ष मनाया जा रहा था पर इस विधेयक में लिखी बातों को किसी ने पढ़ने की जहमत नहीं उठाई।
मामला तब खुला जब सिविल सेवा की तैयारी कर रहे
हल्दुचौड़ निवासी पीयूष जोशी ने उक्त विधेयक को पड़ा उक्त विधायक को पढ़कर वह हैरान रह गए ,क्योंकि उसमें मूल निवास स्थान निवास की बातें तो दूर उत्तराखंड के निवासी की एक अलग ही परिभाषा प्रत्यक्ष रूप में सामने आती नजर आ रही थी।
पीयूष खुद मूल निवास व भु कानून को लेकर काफी मुखर हैं व हाल ही में उत्तराखंड में आरटीआई ऑनलाइन होना पीयूष की संघर्षों की देन है ।
साथ ही भ्रष्टाचार को लेकर जिस प्रकार देहरादून में बॉबी पवार का नाम प्रचलित है तो वही कुमाऊं के बॉबी पवार के रूप में पियूष को देखना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
उन्होंने बताया की जब यह पड़ा तो वह खुद हैरान रह गए वह इस मुद्दे पर उन्होंने बताया की उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधायक जो राज्य की विधानसभा से पास हो चुका है वह राष्ट्रपति द्वारा भी मंजूरी उसको दी जा चुकी है उसमें उसमें नागरिकता के प्रावधानों में मूल निवास व भू कानून की मांगों को दरकिनार कर दिया गया है वह उसमें निवास की दी गई शर्तों निम्नवत है:
- “निवासी” का अर्थ भारत का नागरिक है, चाहे वह उत्तराखंड राज्य के क्षेत्र के भीतर पा बाहर रहता हो, जो:
(1) इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के तहत स्थायी निवासी होने के लिए पात्र है, या
(ii) राज्य सरकार या उसके उपक्रमों/संस्थाओं का स्थायी कर्मचारी है, या
(iii) केंद्र सरकार या उसके उपक्रमों/संस्थाओं का एक स्थायी कर्मचारी है, जो राज्य के क्षेत्र के भीतर कार्यरत है, या (iv) राज्य में कम से कम एक वर्ष से निवास कर रहा हो, या (v) राज्य सरकार या केंद्र सरकार की राज्य में लागू
- किसी भी योजना का लाभार्थी है
इस परिभाषा से न सिर्फ चलते कोई आदमी उत्तराखंड में स्थाई निवास की बाध्यता को खत्म करने के लिए माननीय न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकते हैं।
तो वही 1 वर्ष उत्तराखंड में रहने के बाद या फिर उत्तराखंड में किसी सरकारी योजना का लाभ लेने के बाद वह व्यक्ति इस कानून के आधार पर न्यायालय जाकर स्थाई निवास प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मांग कर सकता है।
क्योंकि इस कानून में स्पष्ट तौर पर नागरिक की परिभाषा बताई गई है व यह कानून उत्तराखंड में लागू की हो चुका है ।
तो एक तरीके से कहा जाए तो कानूनन रूप में अब उत्तराखंड में 1 वर्ष रहकर या फिर किसी भी सरकारी योजना का लाभ लेकर आप उत्तराखंड के निवासी बन सकते हैं।
विशेषज्ञों की माने तो यह बहुत चिंता का विषय है इससे न सिर्फ जल जंगल जमीन पर खतरा होगा वहीं भू कानून मूल निवास की मांग करने वालों को सरकार ने एक और समितियां का झांसा दिया, तो दूसरी ओर मूल निवास भू कानून तो दूर की बात उत्तराखंड में निवास की ही परिभाषा बदल डाली ।
जिस पर खबर ना तो विपक्ष को लगी ना ही मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति को।
अब देखना यहां होगा की क्या उत्तराखंड की जन भावनाओं का सम्मान होगा और मूल निवास की मांग फिर जोर पकड़ेगी या यह मामला भी ठंडा बस्ती में चल जाएगा।
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