उत्तराखंड के मूर्धन्य लोक कलाकारों में शुमार हमारी गाजणा पट्टी के रहने वाले प्रसिद्ध “हलवा देवता” के “पसुवा” हुकमदास जी हमारे बीच नहीं रहे। उत्तरकाशी की गाजणा पट्टी के सौड़, लोदाड़ा, दिखोली, चौड़ियाट और भेटियारा गांव में होने वाला प्रसिद्ध हलवा देवता मेले में हुकमदास जी पर हलुवा देवता अवतरित होता था। मेले के समापन पर वह क्षेत्र के लोगों के कष्टों को स्वयं में समाहित कर खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए गांव के हर घर से बनाकर लाया गया कई किलो हलुवा बिना हाथ लगाए केले के पत्तों पर खाते थे। हलुवा (आटे, दूध, घी, मक्खन से बनने वाला बाड़ी) को खाते थे। यह दृश्य विश्वभर में आयोजित होने वाले मेले में अनूठा और दुर्लभ है। इसके अलावा लोगों को हलुवा देवता के प्रसाद के रूप में कंडाली यानी बिच्छु घास से आशीर्वाद देते थे……..जय हलुवा देवता की
ढोल वादन और गायन के लोक कलाकार थे……..हुकमदास
संवेदना समूह में उनकी कलाकारी को हमने बहुत करीबी से देखा। वह एक कुशल ढोल वादक, रणसिंघा, मसकबिन जैसी वाद्य यंत्रों में पारंगत कलाकार तो थे ही, उत्तराखंड में ढोल के साथ विलुप्त होती गायन शैली उनमें कूट कूट कर भरी थी। संवेदना समूह के कई कार्यक्रमों में युवा लोक कलाकारों की टीम के बावजूद अकेले अकेले “हुकमदास” की कलाकारी भारी पड़ती थी। जैसे ही वह स्टेज पर आते तो अपनी लोककला से हर किसी का मन मोह लेते थे। यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि उत्तराखंड ही नहीं हुकमदास की कलाकारी के दीवाने सात समंदर पार भी थे। अमेरिका से आये फिरंगियों ने उनके सांनिध्य में उत्तराखंड की शान ढोल वादन को सीखा।
…..लोक कलाकार हुकमदास को विनम्र श्रद्धांजलि..