मुफ्त समर्थ पोर्टल के बजाय निजी कंपनी को करोड़ों का भुगतान
देहरादून: वीर माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय (UTU) एक बड़े वित्तीय घोटाले की चपेट में है। विश्वविद्यालय में जिस कार्य को भारत सरकार के समर्थ पोर्टल के माध्यम से बिना किसी शुल्क के किया जा सकता था, उसी के लिए निजी कंपनी को करोड़ों रुपये का भुगतान किया गया। हैरानी की बात यह है कि उस कंपनी ने बेहद कमजोर स्तर का ईआरपी सॉफ्टवेयर तैयार किया और फिर भी उसे लगातार भुगतान मिलता रहा।
कंपनी का सॉफ्टवेयर फेल, फिर भी भुगतान जारी
सॉफ्टवेयर में न तो जरूरी फीचर्स थे, न ही सभी मॉड्यूल्स। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को यहां तक नहीं पता था कि डेटा कहां होस्ट किया गया है। प्रस्तुतीकरण के दौरान कई खामियां सामने आने के बावजूद निजी कंपनी को भुगतान रोका नहीं गया।
जांच समिति का गठन, 15 दिन में सौंपनी होगी रिपोर्ट
तकनीकी शिक्षा विभाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 5 सदस्यीय तकनीकी जांच समिति बनाई है। इसमें ITDA निदेशक एवं IAS अधिकारी नितिका खंडेलवाल को अध्यक्ष बनाया गया है। साथ ही राज्य सूचना विज्ञान अधिकारी, ITDA के वित्त अधिकारी, IIT रुड़की के प्रोफेसर और एक अन्य अधिकारी को शामिल किया गया है।
हर साल 2 करोड़ की देनदारी, टेंडर प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में
विश्वविद्यालय ने निजी कंपनी को प्रति छात्र 567 रुपये की दर से सालाना करीब 2 करोड़ रुपये का भुगतान किया। शासन स्तर पर हुई समीक्षा में इस पूरी प्रक्रिया को अनियमित और संदिग्ध माना गया, जिसके बाद अनुबंध को निरस्त कर दिया गया।
बिना परीक्षण दिए गए भुगतान, अधिकारियों पर मिलीभगत का शक
तकनीकी समिति से सॉफ्टवेयर का कोई परीक्षण नहीं हुआ, फिर भी कंपनी को भुगतान किया गया। वित्त अधिकारी द्वारा आपत्ति जताए जाने के बावजूद किसी ने संज्ञान नहीं लिया। इससे विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों की संभावित मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है।
शासन ने लिया संज्ञान, हो सकते हैं बड़े खुलासे
शासन ने इस पूरे मामले को गंभीर मानते हुए जांच के आदेश दिए हैं। समिति को 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट पेश करनी है। संभावना जताई जा रही है कि जांच में और भी बड़ी वित्तीय अनियमितताएं और जिम्मेदार अधिकारी सामने आ सकते हैं।