एक खास किस्म की घास किसानों की किस्मत बदल रही है। इसकी खेती उनको मालामाल कर रही है। खास बात यह है कि इस पर न तो रोग-कीट लगने का खतरा है और न ही छुट्टा पशु इसे खाते हैं। सजावट के काम आने वाली ये घास दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के आलीशान होटलों और विवाह मंडपों तक की शोभा बढ़ा रही है। इसकी खेती से एक बीघा फसल पर 40 हजार रुपये तक का शुद्ध मुनाफा भी मिल रहा है। जिले के ढबारसी क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं मुराया घास की, जिसे 20 साल पहले ढबारसी के किसान ने उगाना शुरू किया था। बकौल हरि सिंह जमीन के थोड़े से टुकड़े में पारंपरिक खेती से परिवार चलाना मुश्किल होने लगा तो उन्होंने कुछ नया करने की ठानी। एक रिश्तेदार ने मंडपों के सजाने में इस्तेमाल होने वाली मुराया घास की खेती करने का सुझाव दिया। हरि सिंह ने गांव के अन्य किसानों से चर्चा की तो वह उसका मजाक उड़ाने लगे। कुछ ने लाभ-हानि का गणित समझा कर हिम्मत तोड़ने की कोशिश की। लेकिन, हरि सिंह पीछे नहीं हटे और अपनी कुल तीन बीघा जमीन में मुराया बो दी। उनकी मेहनत रंग लाई और फसल से लाटरी लग गई। एक बीघा फसल पर कुल 10 हजार की लागत आई जबकि फसल बेचने पर 50 हजार रुपये मिले और 40 हजार का शुद्ध मुनाफा हुआ। खास बात यह है कि क्षेत्र में खेत-खेत घूम रहे छुट्टा पशुओं के झुंड भी इस घास को नहीं खाते। रोग व कीट भी इस पर बेहद कम लगते हैं।
हरि सिंह बताते हैं कि मुराया का पौधा शादी के मंडप के साथ ही बड़े होटलों की सजावट में इस्तेमाल होता है। आसपास समेत दूर कई राज्यों तक इसकी खासी मांग है। घर बैठे ही फसल सप्लाई के आर्डर तक आसानी से मिल जाते हैं।
गांव के कई लोगों ने शुरू की मुराया की खेती
हरि सिंह से प्रेरित होकर गांव के मकबूल अहमद ने आधा बीघा जमीन में तो नरेश गोयल ने एक एकड़ में मुराफा की खेती शुरू की है। गुलफाम अहमद ने आधा बीघा जमीन में मुराया के पौधे लगाए हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक मुराया घास की एक प्रजाति है, जो पांच- छह फीट तक बढ़ती है। लगाने के करीब तीन साल बाद यह काटने के लिए तैयार हो जाती है। हर साल फसल को काटा जाता है। आम तौर पर खरीदार ही फसल को काटकर ले जाते हैं। इस फसल पर रोग- कीट बेहद कम लगते हैं। प्रतिकूल मौसम के प्रति भी इसकी जिजीविषा काफी बेहतर होती है।