रिपोर्ट:-सूरज विश्वकर्मा
यूं तो सरकार हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए बड़े बड़े दावे करती है लेकिन असल में जमीनी हकीकत कुछ और यह हकीकत कोई और नहीं स्वयं सरकारी स्कूल के बंजर पड़े भवन दिखा रहे हैं,यह एकमात्र स्कूल नही ऐसे राज्य के तमाम स्कूल होंगे जो अब बंजर पड़ चुके हैं और कुछ भविष्य में बंजर होने की स्तिथि में हैं।
हम देश को विश्व गुरु बनाने की बात करते है,यह उत्तराखंड राज्य भारत देश में प्राचीन काल से ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है,यहां अनेकों विद्वान ऋषि मुनि मानुष हुए है,शिक्षा के क्षेत्र में भी यह उत्तराखंड वेदों की तपस्थली रही है,आज भले कितनी शिक्षा व्यवस्था की बाते कर लें,विश्वगुरु की बाते कर लें उतराखंड सरकार के सरकारी विद्यालयों की स्तिथि दयनीय हालातो में है,इन विद्यालयों में गरीब तबके के मध्यमवर्गीय परिवार के लोग पढ़ते है,कही विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं कहीं विद्यालयों में संसाधन नही है,कई सारे सरकारी विद्यालय बंद हो चुके है और भी बंद होने के कगार पर है।
सरकार भले कितनी योजनाओं का बखान कर रही है लेकिन आज कोई भी अपने बच्चो को सरकारी विद्यालयों में नही पढ़ाना चाहता,लोग शिक्षा के लिए मजबूर हैं बच्चो को निजी विद्यालयों में पढाने के लिए जिनकी भारी भरकम फीस से आर्थिक संकट से जूझना पड़ता है।
मेरी व्यक्तिगत चिंता भी है की आखिर इन सरकारी विद्यालयों की हालत कब सुधरेंगे,कब इनमे संसाधन उपलब्ध होंगे……………क्या सरकारी स्कूल के अध्यापकों का और सरकारी कर्मचारियों के बच्चो का पढ़ना इन सरकारी स्कूलों में अनिवार्य नहीं कर देना चाहिए तभी इनकी हालतो में सुधार हो सकता है,जब तक प्रत्येक नागरिक को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा निशुल्क नही मिलती विश्वगुरु का बनना तो एक राजनीतिक वक्तव्य मात्र है।
जमीनी हकीकत तो यह है,शिक्षा की बदहाली भी पलायन का जिम्मेदार है और सरकारी विद्यालय अब भूतिया खंडर बनते जा रहे है जो सोचनीय विषय है और यही स्तिथि रही तो इन विद्यालयों के जर्जर भवनों की कहानी निजी विद्यालयों की किताबों में पढ़ाई जाएगी।
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