ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
उत्तराखंड एक ऐसा अनोखा राज्य राज्य हैं जहां के पहाड़ों से चुने जनप्रतिनिधि कुछ दिन साल में पहाड़ पर चढ़ते हैं,यहीं कारण हैं की विकास उत्तराखंड में सीमित दायरे में मतलब मैदानी क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया,उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आज भी शिक्षा स्वास्थ्य अस्पताल पानी रोजगार आदि की मूलभूत सुविधाओं का अभाव हैं और साथ में हैं पहाड़ का आपदा भरा जीवन।
एक लंबे आंदोलन के बाद एक अलग पर्वतीय राज्य उत्तराखंड अस्तित्व में आया और इसके लिए न सिर्फ आंदोलन हुआ बल्कि नरसंहार हुआ इसलिए उसके बाद भी आज 24 वर्षों बाद पर्वतीय अंचलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना यहां के पहाड़ से चुने नेताओं और उनकी सरकारों पर हमेशा ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करता हैं।
उत्तराखंड का दुर्भाग्य यह हैं की जब यहां आने वाले पर्यटक भी अगर गूगल में उत्तराखंड को जानने का प्रयास करते हैं तो सबसे पहले उन्हें अस्थाई राजधानी देहरादून और ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण दिखता हैं,आज भी उत्तराखंड की एक स्थाई राजधानी नहीं हैं यह कहीं ना कहीं उन आंदोलनकारियों का अपमान हैं जिन्होंने आंदोलन के दौरान ही अलग पर्वतीय राज्य की राजधानी गैरसैंण घोषित की थी,अब वहां कभी नेताओं को ठंड लग जाती हैं तो कभी अधिकारी वहां नहीं जाना चाहते।
अब उन पहाड़ी विधान सभाओं का विकास आखिर कैसे हो जिन विधानसभा के नेता चुने जाने के बाद परिवार सहित देहरादून पलायन कर जाएं,जब अधिकारी ही इन पहाड़ के रास्तों पर चलकर अपने कार्यालयों में नहीं बैठेंगे तो कैसे पहाड़ के विकास की नीतियां बनें।
वर्तमान सरकार पहाड़ से चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ अब अगले तीन दिनों तक गैरसैंण में रहकर अनुपूरक बजट पेश करेगी,और पूरे तीन दिनों तक यह सारे माननीय नेता देहरादून की चकाचौंध और सुख सुविधाओं से दूर रहकर अगले वर्ष तक के लिए पहाड़ की नीतियां बनाकर वापस लौट आएंगे।
वाकई तीन दिनों का गैरसैंण का सत्र उन कठिन पहाड़ों के लिए कोई मायने नहीं रखता जहां कंधो में गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाया जाता है,इस दौरान कभी शिशु की मृत्यु हो जाती है तो कभी मां की।
इसलिए जब गैरसैंण के स्थानीय लोगों से बात करो तो वह कहते हैं सरकार यहां दो-चार दिनों के लिए आती है पूरा अधिकारी तबका उनकी सेवा में लगा रहता है और फिर चले जाती है,एक हफ्ते में सुनसानी हो जाती है यहां कुछ काम नहीं होता,फिर अगले साल गैरसैंण की याद आती है,राज्य के नेताओं के लिए यह किसी पिकनिक स्पॉट से बिल्कुल भी कम नहीं है,गैरसैंण में तीन दिनों का सत्र होने का मतलब है नेताओं का पर्यटक की तरह अपने राज्य में कुछ दिन पर्यटक बन जाना।
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