ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट-रिपोर्ट कार्तिक उपाध्याय
उत्तराखंड अलग राज्य बनने के 23 वर्षों बाद फिर जाग उठा हैं इस बार युवा मूल निवास 1950 की ताकत को पहचान चुका था,उत्तराखंडी जाग उठे और सरकार से पहाड़ की जमीन बचाने के लिए भू कानून और नौकरी बचाने के लिए मूल निवास 1950 लागू करने की मांग करने लगा।
उत्तराखंड में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही लेकिन राज्य को विकास की दिशा देने के लिए राष्ट्रीय नहीं बल्कि क्षेत्रीय पार्टी की आवश्यकता है,हालांकि राज्य निर्माण करने वाले उत्तराखंड क्रांति दल का बैनर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की सरकार में सहभागिता कर चुका है लेकिन उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं के लालच के कारण राज्य की जनता ने उत्तराखंड क्रांति दल को पूरी तरह नकार दिया और तभी जरूरत पड़ी कि बड़े आंदोलन के लिए उत्तराखंड क्रांति दल से अलग उससे ही जुड़े युवाओं को एक नया बैनर मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति को बनाना पड़ा।
मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति ने जैसे ही देहरादून में आंदोलन के लिए आवाज उठाई तो आंदोलन वाले दिन हजारों की संख्या में मूल निवासी देहरादून में इकट्ठे हो गए,उसके बाद संघर्ष समिति रुकी नहीं और प्रदेश भर में हल्द्वानी कोटद्वार बागेश्वर सहित जगह-जगह मूल निवास रैली करने लगी,हर जगह हजारों की संख्या में लोग जुट रहे थे और शायद यही कारण है कि यह राष्ट्रीय पार्टियों को बिल्कुल भी नहीं पच रहा।
उत्तराखंड क्रांति दल ने भी अब तक के सभी आंदोलन में प्रतिभाग किया वह जहां-जहां आंदोलन हुआ चंद बचे कार्यकर्ता झंडा लेकर हमेशा पहुंचे लेकिन हकीकत यह है कि यदि यह आंदोलन उत्तराखंड क्रांति दल करता था तो कभी भी इतनी भीड़ नहीं जुड़ती क्योंकि यूकेडी को पूरे राज्य ने एक साथ नकारा है,यह बात यूकेडी नेताओं को बुरी लग सकती है लेकिन यह राजनीति का कड़वा सत्य उत्तराखंड क्रांति दल के लिए हैं।
मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति ने 1 सितंबर को गैरसैंण में मूल निवास स्वाभिमान रैली के आयोजन की तिथि लगभग दो महीने पहले घोषित कर दी थी और लगातार आंदोलनकारी युवा इस रैली को सफल बनाने के लिए जुट गए थे लगभग 2 सप्ताह पूर्व उत्तराखंड क्रांति दल ने उसे समय चौंका दिया था जब उन्होंने कहा कि वह गैरसैंण में होने वाली रैली से समर्थन वापसी लेते हैं इसका फर्क उत्तराखंड की जनता को बिल्कुल भी नहीं पड़ा क्योंकि राज्य की जनता जानती है यदि किसी रैली से यूकेडी के चंद कार्यकर्ता गायब हो जाएं तो उस रैली में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अब देर रात जागो उत्तराखंड जो की आशुतोष नेगी एक पेज चलाते हैं उन्होंने कल देर शाम लिखा की 1 सितंबर को गैरसैंण में होने वाली रैली यूकेडी के बैनर तले ही होगी उन्होंने यूकेडी कार्यकर्ताओं से शामिल होने की अपील की है,आपको बताते हैं चले की कल ही आशुतोष नेगी को उत्तराखंड क्रांति दल का मीडिया प्रभारी और संगठन मंत्री बनाया गया है।
अब यहां यह सवाल पैदा हो गया है कि क्या उत्तराखंड के अंदर यूकेडी मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति के आंदोलन में मूल निवासियों की भीड़ देखकर घबरा गई है क्या वह हजम नहीं कर पा रही की जो भीड़ उत्तराखंड क्रांति दल के साथ होनी थी वह उनके साथ न होकर अन्य आंदोलन में नजर आ रही है,हालांकि इसका कारण उत्तराखंड क्रांति दल के नेता ही है कि आज राज्य की जनता उन पर विश्वास नहीं करती क्योंकि उन्होंने दोनों पार्टियों के साथ सरकार में रहकर इस विश्वास को तोड़ा है।
या फिर 1 सितंबर को जो गैरसैंण में रैली का आयोजन होना था उसको लेकर राष्ट्रीय पार्टियां कहीं ना कहीं घबराने लगी है उन्होंने फिर इस रैली को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र करना शुरू कर दिया है और यह हो भी क्यों ना राष्ट्रीय पार्टियों पर दिल्ली से संचालित होने के आरोप राज्य की जनता लागत आई है,ऐसे में उत्तराखंड के मूल निवासी अगर अपनी मांगों को लेकर इकट्ठे होते हैं तो यह राष्ट्रीय पार्टियों को हजम हो जाए यह तो वाकई आश्चर्यजनक होगा और मूल निवास भू कानून के मुद्दे पर उत्तराखंड का हर वर्ग विशेष कर युवा इस पर संगठित हो रहा है कुमाऊं गढ़वाल जौनसार पूरा उत्तराखंड एक आवाज में मूल निवास और भू कानून की मांग करता नजर आ रहा है।
लेकिन उत्तराखंड कांति दल जो राज्य का क्षेत्रीय दल है वह अचानक किसी अन्य बैनर के आंदोलन को हाईजैक कर स्पष्ट संदेह पैदा दे रहा है कि कहीं ना कहीं क्षेत्रीय पार्टी का इस्तेमाल फिर एक बार उत्तराखंड के मूल निवासियों को असंगठित करने के लिए राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा किया जा रहा है,उत्तराखंड क्रांति दल फिर एक बार प्रदेश की जनता की नजरों के सामने बहुत बुरी तरह गिरने वाले कृतियों को अंजाम देने लगा है,हालांकि इससे उसे तो बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता यह हम मान सकते हैं लेकिन कहीं ना कहीं मूल निवास स्वाभिमान रैली में इसका असर जरूर पड़ेगा क्योंकि उत्तराखंड क्रांति दल के बैनर के तले आंदोलन में इतने मूल निवासी प्रतिभाग बिल्कुल नहीं करेंगे जीतने की संघर्ष समन्वय समिति के साथ करते आ रहे हैं,क्योंकि उत्तराखंड क्रांति दल कोई समिति नहीं एक राजनीतिक दल है लेकिन संघर्ष समिति के साथ सभी राजनीतिक विचारधारा के जुड़े हुए मूल निवासी संघर्ष कर रहे थे।
इस संदर्भ में हमने यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष को फोन मिलाया उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
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