उत्तराखंड के स्वाभिमान पर चोट, जनता में आक्रोश
उत्तराखंड में हाल ही में एक मंत्री द्वारा पहाड़ी मूल के लोगों के प्रति की गई अपमानजनक टिप्पणी से जनता आक्रोशित है। इस बयान ने न केवल पहाड़ी समुदाय के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है, बल्कि राज्य की अस्मिता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। आम जनता से लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों तक, सभी इस बयान की कड़ी निंदा कर रहे हैं।
हालांकि, इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि सत्ता पक्ष इस मुद्दे को टालने और दबाने की कोशिश कर रहा है। लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले बयान पर न तो सत्तारूढ़ दल ने कोई माफी मांगी, न ही बयान देने वाले मंत्री पर कोई कार्रवाई की गई। ऐसे में यह केवल एक मंत्री की मानसिकता का विषय नहीं रह जाता, बल्कि पूरी सरकार की सोच पर सवाल खड़े करता है।
गैरसैंण की अनदेखी पर भी गुस्सा
वहीं, सरकार द्वारा गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन सत्र न करने का निर्णय भी जनता के गुस्से को और भड़का रहा है। कांग्रेस विधायक इस फैसले का विरोध कंबल ओढ़कर विधानसभा में कर रहे हैं, जो सरकार के फैसले पर कटाक्ष करने का एक तरीका है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था, लेकिन सरकार की बेरुखी के चलते यह अब केवल एक कागजी राजधानी बनकर रह गई है।
प्रधानमंत्री की यात्रा और हकीकत
प्रधानमंत्री की उत्तराखंड यात्रा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। उनकी यात्रा को शीतकालीन पर्यटन को बढ़ावा देने से जोड़ा जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य की अर्थव्यवस्था और पर्यटन को इससे कोई ठोस लाभ नहीं मिलेगा। राज्य की कृषि उपज, जैसे उत्तरकाशी के बीन्स और हरसिल के सेब, आज भी एक मजबूत विपणन नेटवर्क की कमी के कारण उचित दाम नहीं पा रहे हैं।
उत्तराखंड के लोग अब सिर्फ सांकेतिक कदमों से संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें ठोस योजनाओं और उनके प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत है। सरकार अगर लोगों की भावनाओं की अनदेखी करती रही, तो आने वाले समय में जनता का आक्रोश और बढ़ सकता है।
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