दिल्ली: उतराखण्डी भाषा प्रसार समिति की मुहिम बड़ी द्रुत गति से आगे बढ़ रही है। प्रतिनिधि भाषा का प्रस्ताव समिति के प्रतिनिधि मण्डल ने अल्मोड़ा पिथौरागढ़ के सांसद श्री अजय टम्टा को दिया, श्री टम्टा जी ने स्वीकारा किया कि यह उतराखण्ड के लिए आवश्यक है और इस पर काम होना चाहिए। उन्होंने ने आश्वासन दिया कि इस संबंध में वे व्यक्तिगत रूप से काम करेंगे।
उत्तराखंड से राज्य सभा के सांसद श्री नरेश बंशल ने प्रतिनिधि भाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हम इस संबंध में उत्तराखंड सरकार को अवश्य अवगत कराएंगे कि उत्तराखंड की एक प्रतिनिधि भाषा पर काम होना चाहिए।
केंद्रीय राज्य मंत्री श्री अजय भट्ट ने इस विषय की गंभीरता को देखते हुए इस पर तुरत एक पत्र उतराखण्ड के मुख्यमंत्री को भेजने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि क्या आज भी उत्तराखंड की चौदह बोलियों के साहित्यकार हैं जो अपनी भाषा को संरक्षित करने की बात करें। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्य को बहुत पहले आरंभ हो जाना चाहिए था परंतु अब हम अवश्य इस पर काम करने के लिए उत्तराखंड सरकार को कहेंगे।
उत्तराखंडी भाषा प्रसार समिति के प्रतिनिधि मंडल में डॉ बिहारीलाल जलन्धरी, श्री प्रताप सिंह शाही, श्री श्याम अधिकारी, श्री बच्चन अधिकारी, श्री प्रेम सिंह रावत, डॉ कण्डवाल, श्री बिमल सजवाण आदि सभी सांसदों से मिले।
उत्तराखंडी भाषा प्रसार समिति के अध्यक्ष डॉ बिहारीलाल जलन्धरी ने सभी सांसदों को प्रतिनिधि भाषा के औचित्य के संबंध में जानकारी दी तथा उतराखण्ड में हो रहे गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी वाद के हानि के संबंध में बताया। उन्होंने कहा कि गत बाईस वर्षों से उत्तराखंड में किसी भी बोली की अकादमी का गठन इस लिए नहीं हो पाया क्योंकि अभी उतराखण्ड की कोई भी बोली प्रतिनिधि भाषा के लिए परिपक्व नहीं है जिसके नाम पर शासन निर्णय ले सके। हम उतराखण्ड में बोलियों के नाम पर बंटे हुए हैं। उत्तराखंडी हैं और उत्तराखंड के नाम पर ही एक प्रतिनिधि भाषा की आवश्यकता है जिस पर काम उतराखण्ड सरकार द्वारा ही कार्य आरंभ किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी को संविधान में सूचीबद्ध किया जाता है तो भविष्य में कई रास्ते खुलेंगे परंतु प्रतिनिधि भाषा इन सबसे ऊपर होगी जो उतराखण्ड की सभी चौदह बोलियों को संवर्धित कर उनका प्रतिनिधित्व करेगी। आज उतराखण्ड की केवल दो बोलियों की बात हो रही है जबकि उतराखण्ड में चौदह बोलियां हैं हम इनके अलावा अन्य बोलियों के साथ असमानता का व्यवहार नहीं कर सकते।
उत्तराखंड की एक प्रतिनिधि भाषा हो इस पर साहित्यकारों के साथ समाज में एक साकारात्मक संदेश और इसकी स्वीकृति पर सभी के साकारात्मक सोच है। यदि इस विषय पर उत्तराखंड सरकार साकारात्मक काम करती है तो बहुत जल्दी प्रतिनिधि भाषा पर काम आरंभ होगा।