कैसे खुला पूरा खेल?
धानाचूली निवासी महेंद्र सिंह बिष्ट को दो साल दो महीने पहले संविदा ऑपरेटर के रूप में नियुक्त किया गया था। ज्वाइनिंग के कुछ ही समय बाद उसने अधिकारियों से नजदीकियां बढ़ाकर ऐसा प्रभाव बनाया कि कोई भी उसकी गतिविधियों पर सवाल उठाने से डरने लगा।
जांच में खुलासा हुआ कि महेंद्र विभाग को चुपचाप नुकसान पहुंचा रहा था और अपनी मनमरजी का साम्राज्य चलाता था।
बायोमैट्रिक होने के बावजूद उपस्थिति में हेरफेर
जांच रिपोर्ट के अनुसार—
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19, 20, 21 दिसंबर 2023 और 6 मार्च 2024 को बायोमैट्रिक में वह अनुपस्थित था, लेकिन रजिस्टर में बैक डेट से हस्ताक्षर मौजूद थे।
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26 महीने में 76 बार उसने सुबह 8–9 बजे के बीच उपस्थिति लगाई और दिनभर गायब रहा।
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कई बार उसने छुट्टी का आवेदन दिया और उसी दिन बायोमैट्रिक पर हाजिरी भी दर्ज करा दी।
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यहां तक कि जो डाक वह खुद भेजता था, उसी का डिस्पैच भी स्वयं ही रजिस्टर में चढ़ा देता था।
यह पूरा सिस्टम उसके कब्जे में था।
विभागीय सामान घर ले गया
जांच में यह भी पाया गया कि विभागीय कार्य के लिए मिले माउस और कीबोर्ड वह अपने साथ घर ले गया था।
अपने भाई के नाम पर कराई पेमेंट
महेंद्र ने अपने सगे भाई अजय बिष्ट के नाम पर—
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नंधौर छकाता रेंज
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लॉट संख्या 05/2022-2023 में
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जड़ खुदान का कोटेशन डलवाया
जांच में कोटेशन की हस्तलिपि भी महेंद्र की ही प्रतीत हुई।
कार्य के बाद भाई के खाते में ₹2,21,840 का भुगतान कराया गया।
आरटीआई लॉगिन का पासवर्ड बदल कर छिपाई जानकारी
जब आरटीआई के जरिए ऑपरेटर संबंधी जानकारी मांगी गई, तो RTI लॉगिन का यूज़र आईडी और पासवर्ड ही बदल दिया गया ताकि रिकॉर्ड तक कोई पहुंच न सके।
बाद में मुख्यालय ने इसे किसी तरह रिकवर किया।
राजकीय खाते से गलत भुगतान करा दिया
महेंद्र ने सहायक लेखाकार और बैंक स्टाफ की मिलीभगत से—
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आउटसोर्स कर्मचारियों के मानदेय का ₹72,775
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वन निगम के चेक की फोटो कॉपी से
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बैंक के माध्यम से जारी करा दिया।
जब वन प्रभाग ने असली चेक भेजा तो दूसरी बार भुगतान हो गया।
राशि वापस मंगवाने में एक माह लगा।
अधिकारियों ने कार्रवाई क्यों की?
प्रभाग में नई व्यवस्था के बाद शिकायतें सामने आने पर पूरे मामले की विस्तृत जांच कराई गई।
जांच रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताएं पाई गईं, जिसके बाद कंप्यूटर ऑपरेटर को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया और निगम के सभी कार्यों से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।









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