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उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद के ग्राम पंचायत चानी, पट्टी-बासर, तहसील बालगंगा के मूल निवासी अधिवक्ता ध्रुव जोशी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) परीक्षा 2024 में सफलता प्राप्त कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने इस परीक्षा को अपने पहले ही प्रयास में उत्तीर्ण कर यह सिद्ध कर दिया कि कठिन चुनौतियों को भी दृढ़ संकल्प और मेहनत से पार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में AOR बनने के लिए यह परीक्षा देश की सबसे कठिन विधि परीक्षाओं में से एक मानी जाती है, जिसे पास करने के लिए अधिवक्ताओं को कम से कम पांच वर्षों का अनुभव होना आवश्यक होता है और एक वर्ष तक किसी वरिष्ठ AOR के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होता है।
सुप्रीम कोर्ट की सबसे कठिन विधि परीक्षा
AOR परीक्षा ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान चार दिनों तक आयोजित की जाती है, जिसमें प्रत्येक दिन चार घंटे की लिखित परीक्षा होती है। इस परीक्षा में अधिवक्ताओं के ज्ञान और दक्षता को परखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिस और प्रोसीजर, ऐतिहासिक फैसलों की व्याख्या, याचिकाओं की ड्राफ्टिंग और अधिवक्ताओं की आचार संहिता से जुड़े प्रश्न शामिल होते हैं। परीक्षा के प्रश्नपत्र सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं के एक पैनल द्वारा तैयार किए जाते हैं और मूल्यांकन भी अनुभवी अधिवक्ताओं द्वारा किया जाता है।
ध्रुव जोशी का विधि क्षेत्र में सफर
ध्रुव जोशी पिछले नौ वर्षों से दिल्ली में विधि व्यवसाय से जुड़े हैं और उनका निजी कार्यालय निज़ामुद्दीन ईस्ट में स्थित है, जो सुप्रीम कोर्ट के पास है। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, AOR बनने के लिए अधिवक्ता का कार्यालय सुप्रीम कोर्ट से 16 किलोमीटर की परिधि में होना आवश्यक है।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के डाक पत्थर में हुई और इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई देहरादून में पूरी की। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे ध्रुव जोशी को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्होंने पांच वर्षीय विधि स्नातक की पढ़ाई भारत के प्रतिष्ठित सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय, पुणे से की। उनकी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों के कारण उन्हें जर्मनी में अध्ययन के लिए DAAD स्कॉलरशिप प्राप्त हुई, जहां उन्होंने विभिन्न देशों के कानूनों का गहन अध्ययन किया।
अपने विधि ज्ञान को और समृद्ध करने के लिए उन्होंने कॉलेज के समय से ही देश के कई प्रसिद्ध अधिवक्ताओं के साथ प्रशिक्षण लिया और स्नातक के बाद दिल्ली में कार्यरत हो गए। वे देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों, ट्रिब्यूनलों और अदालतों में सिविल, कमर्शियल और कंपनी मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं। 2016 से वे उच्च न्यायालय में कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ सहयोग कर रहे हैं।
AOR बनने का महत्व
सुप्रीम कोर्ट में कोई भी केस फाइल करने का अधिकार केवल AOR को ही होता है। किसी भी वरिष्ठ वकील या अन्य अधिवक्ता को सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के लिए एक AOR की आवश्यकता होती है। AOR का दायित्व होता है कि केस सुप्रीम कोर्ट के मानकों के अनुरूप तैयार किया जाए और अदालत के समक्ष पेश किया जाए। इसलिए यह परीक्षा न केवल कठिन होती है, बल्कि इसमें सफल होने के बाद अधिवक्ता की जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं।
उत्तराखंड के लिए गर्व का क्षण
1950 से अब तक पूरे देश में मात्र 3500 अधिवक्ताओं को ही AOR का दर्जा प्राप्त हुआ है। उत्तराखंड से इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले अधिवक्ताओं की संख्या बहुत कम रही है, और खासकर टिहरी गढ़वाल के लिए यह एक अति गौरवपूर्ण उपलब्धि है। ध्रुव जोशी की इस उल्लेखनीय सफलता पर उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!