बिग ब्रेकिंग: एम्स ऋषिकेश में 2.73 करोड़ का घोटाला उजागर
पूर्व निदेशक समेत तीन अधिकारियों पर सीबीआइ का शिकंजा, मरीजों के नाम पर हुआ करोड़ों का खेल
घोटाले का खुलासा और सीबीआइ की कार्रवाई
एम्स ऋषिकेश में 2.73 करोड़ रुपये का बड़ा घोटाला सामने आया है। सीबीआइ की एंटी करप्शन टीम ने 26 मार्च 2025 को संस्थान के कार्डियोलॉजी विभाग पर छापा मारा। जांच में खुलासा हुआ कि कोरोनरी केयर यूनिट (CCU) की स्थापना से जुड़ी निविदा फाइल लंबे समय से गायब थी और मौके पर सीसीयू अधूरा व गैर-कार्यात्मक पाया गया।
इस मामले में सीबीआइ ने पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, तत्कालीन एडिशनल प्रोफेसर रेडिएशन ऑन्कोलॉजी डॉ. राजेश पसरीचा और तत्कालीन स्टोर कीपर रूप सिंह को आरोपी बनाया है।
कैसे हुआ करोड़ों का खेल?
जांच में पाया गया कि स्टॉक रजिस्टर में 200 वर्ग मीटर आयातित दीवार पैनल, 91 वर्ग मीटर आयातित छत पैनल, 10 मल्टी पैरा मॉनिटर और एयर प्यूरीफायर दर्ज थे। लेकिन ये उपकरण वास्तविक रूप से उपलब्ध ही नहीं थे। इसके बावजूद ठेकेदार को 2.73 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया।
सीबीआइ का कहना है कि यह पूरा मामला एक संगठित षड्यंत्र का हिस्सा था जिसमें अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग कर ठेकेदार कंपनी मेसर्स प्रो मेडिक डिवाइसेस को अनुचित लाभ पहुँचाया।
दर्ज हुए गंभीर मुकदमे
सीबीआइ ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 468 और 471 (जालसाजी और फर्जी दस्तावेज़ का प्रयोग) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 13(1)(d) और 13(2) में मुकदमा दर्ज किया है। इन धाराओं के तहत दोष सिद्ध होने पर आरोपियों को 7 से 10 साल की कठोर सजा और जुर्माना हो सकता है।
मरीजों की जान से खिलवाड़
जिस सीसीयू में गंभीर हृदय रोगियों का इलाज होना था, उसे अधूरा छोड़ दिया गया। कई उपकरण घटिया क्वालिटी के मिले, जबकि कई बिल्कुल गायब पाए गए। साफ है कि यह घोटाला न केवल सरकारी धन की लूट है बल्कि मरीजों की जान से भी सीधा खिलवाड़ है।
एम्स ऋषिकेश: स्वास्थ्य सेवाओं से ज्यादा घोटालों में सुर्खियों में
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ऋषिकेश की नींव 2004 में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत रखी गई थी और 2012 से मरीजों को सेवाएं मिलने लगीं। शुरुआत में इसे उत्तराखंड और आसपास के राज्यों के लिए उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र माना गया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से संस्थान का नाम स्वास्थ्य सुविधाओं से ज्यादा घोटालों से जुड़ रहा है।
पहले के घोटाले
- 2022 : स्वीपिंग मशीन और केमिस्ट स्टोर आवंटन में 4.41 करोड़ रुपये की हेराफेरी।
- 2023 : उपकरण खरीद में 6.57 करोड़ रुपये का घोटाला, जहां मशीनें 3 गुना कीमत पर खरीदी गईं और सालों तक उपयोग में ही नहीं लाई गईं।
संस्थान की साख पर धब्बा
तीन बड़े घोटालों ने यह साबित कर दिया है कि एम्स ऋषिकेश में स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती की बजाय भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हो चुकी हैं। करोड़ों की हेराफेरी ने न केवल संस्थान की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है बल्कि उन मरीजों की उम्मीदें भी तोड़ी हैं जिनके लिए यह संस्थान बनाया गया था।
अब सवाल यह है कि—
👉 क्या दोषियों को सख्त सजा मिल पाएगी?
👉 क्या एम्स ऋषिकेश का नाम फिर से सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जाना जाएगा या घोटालों की काली छाया ऐसे ही बनी रहेगी?
Discussion about this post