घुटनों में दर्द आज एक आम समस्या बन चुकी है, खासकर उन लोगों के लिए जो उम्र के एक पड़ाव को पार कर चुके हैं। उम्र के साथ शरीर की लचक कम हो जाती है और जोड़ों के बीच मौजूद कार्टिलेज धीरे-धीरे घिसने लगती है। इसका नतीजा होता है — असहनीय दर्द और चलने-फिरने में परेशानी। कई बार यह दर्द इतना बढ़ जाता है कि घुटनों के साथ-साथ हाथ, पैरों और उंगलियों में भी फैल जाता है। ऐसे में समय रहते इलाज न किया जाए तो यह स्थिति बेहद गंभीर रूप ले सकती है।
इसी तरह की एक कहानी है चंडीगढ़ की रहने वाली 64 वर्षीय रीटा शर्मा जी की, जो आज अपनी दूसरी पारी को पूरी ऊर्जा और आत्मविश्वास से जी रही हैं। रीटा जी एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला हैं, जिन्होंने जीवन की तमाम कठिनाइयों का सामना डटकर किया। उनके पति का देहांत वर्षों पहले हो गया था और तभी से घर-परिवार की जिम्मेदारी उन्होंने अकेले संभाली है। उनकी तीन बेटियां हैं, जिनमें से एक बेटी और नातिन उनके साथ रहती हैं।
जब दर्द ने तोड़ दिया हौसला
कुछ वर्ष पहले रीटा जी को घुटनों में हल्का दर्द महसूस हुआ, जो धीरे-धीरे बढ़ता गया। देखते ही देखते यह दर्द इतना बढ़ गया कि वे रोजमर्रा के काम तक नहीं कर पा रही थीं। आटा गूंथना, रोटी बनाना और घर के छोटे-छोटे काम भी उनके लिए चुनौती बन गए। उनके हाथ और पैरों के साथ-साथ उंगलियों में भी दर्द शुरू हो गया था।
इलाज के लिए उन्होंने कई डॉक्टरों से संपर्क किया। शुरुआत में दवाओं से कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन कुछ समय बाद दर्द फिर से लौट आता। इस असहनीय स्थिति ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह तोड़ कर रख दिया था।
एक नई उम्मीद की शुरुआत
इसी दौरान उन्होंने पारंपरिक आयुर्वेदिक उपायों की ओर रुख किया और एक खास औषधीय गोंद का सेवन शुरू किया, जो दर्द के लिए काफी लाभकारी मानी जाती है। इस गोंद को उन्होंने एक विश्वसनीय स्रोत से मंगवाया और नियमित रूप से सेवन करना शुरू किया। कुछ ही हफ्तों में उन्हें अपने घुटनों, हाथों और उंगलियों के दर्द में राहत महसूस होने लगी।
धीरे-धीरे उनकी स्थिति पहले से बेहतर होती चली गई। आज वे न सिर्फ बिना दर्द के चल-फिर सकती हैं, बल्कि अपनी नातिन के साथ पार्क में घूमना, घर के कामकाज करना और दूसरों से मिलना-जुलना भी पहले की तरह कर रही हैं।
बालों की देखभाल भी हुई आसान
घुटनों के दर्द से राहत मिलने के बाद रीटा जी ने बालों की समस्या के लिए भी प्राकृतिक औषधियों का प्रयोग शुरू किया, जिसमें उन्हें अच्छा परिणाम मिला। अब वे न सिर्फ स्वस्थ हैं, बल्कि पहले से ज्यादा आत्मविश्वासी और खुशहाल महसूस करती हैं।
परिवार बना रीटा जी की ताकत
इस पूरी यात्रा में रीटा जी का परिवार उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा। वे कहती हैं कि अगर उनका परिवार उनका साथ न देता, तो शायद वे आज भी बिस्तर पर पड़ी होतीं। वर्ष 2021 में चिकनगुनिया के बाद उन्हें यह दर्द शुरू हुआ था, लेकिन समय पर सही उपाय अपनाकर उन्होंने दर्द को जड़ से खत्म किया।
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