डेढ़ साल से चल रहा था खेल
करीब डेढ़ साल पहले इस घोटाले की भनक लगी थी। जैसे ही मामला पुलिस तक पहुंचा, जांच शुरू होते ही परत दर परत गड़बड़ियां सामने आने लगीं। पुलिस ने स्वच्छता समितियों के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष से लगातार पूछताछ कर वेतन भुगतान का हिसाब-किताब खंगाला। अब जांच सीधा उन लोगों पर टिकी है जिनके हस्ताक्षरों के आधार पर करोड़ों रुपये समिति खातों में ट्रांसफर किए गए।
तीन माह पहले दर्ज हुई थी शिकायत
उप नगर आयुक्त (विधि) गौरव भसीन ने तीन माह पूर्व शहर कोतवाली में तहरीर दर्ज कराई थी। शिकायत में साफ कहा गया कि पिछले वर्ष हुए भौतिक सत्यापन में 99 कर्मचारी मौके पर अनुपस्थित पाए गए, जबकि उनके नाम पर लगातार वेतन जारी होता रहा। यह भुगतान समिति सचिव, अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के सत्यापन के आधार पर हुआ, जिसे निगम ने बिना किसी क्रॉस-वेरिफिकेशन के मान्य कर लिया।
नियमों को ताक पर रखकर हुआ भुगतान
सरकारी नियमों के अनुसार कर्मचारियों का वेतन सीधे उनके बैंक खाते में DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए जाना चाहिए था। लेकिन जून 2019 से नियम बदल दिए गए और पूरा भुगतान स्वच्छता समितियों को सौंप दिया गया। इसके बाद निगम ने कर्मचारियों की सूची के आधार पर एकमुश्त राशि समिति के खाते में डाल दी।
समिति ने कर्मचारियों तक वेतन पहुंचाया या नहीं, इसकी कोई निगरानी नहीं की गई। यही वजह रही कि फर्जीवाड़ा लंबे समय तक चलता रहा।
किन-किन वार्डों में हुआ फर्जीवाड़ा
जांच में सामने आया कि यह घोटाला निम्न वार्डों में हुआ:
मालसी, दून विहार, विजय कॉलोनी, श्रीदेव सुमन, वसंत विहार, पंडितवाड़ी, इंद्रा नगर, कांवली, राजीव नगर, लाडपुर, नेहरूग्राम, रायपुर, मोहकमपुर, चक तुनवाला-मियांवाला, लोहिया नगर, माजरा, भारूवाला ग्रांट, बंजारावाला, मोथरोवाला, पित्थूवाला, मेहूंवाला-1, मेहूंवाला-2, आरकेडिया-1, आरकेडिया-2, नत्थनपुर-1, नत्थनपुर-2, नवादा, हर्रावाला, बालावाला, नकरौंदा और नथुवावाला।
राजनीतिक गलियारों में हलचल
इस घोटाले ने न केवल नगर निगम प्रशासन की नींद उड़ा दी है बल्कि राजनीतिक हलचल भी तेज कर दी है। जिन वार्डों में यह गड़बड़ी सामने आई है, उनमें से कई वार्डों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के वरिष्ठ पार्षद काबिज रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में इस मामले का राजनीतिक असर और गहराने की संभावना है।
Discussion about this post