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निजी कंपनी की रिपोर्ट पर बखेड़ा
यह सर्वे किसी सरकारी संस्था का नहीं बल्कि “पी वैल्यू एनालिटिक्स” नाम की निजी डेटा साइंस कंपनी का है। कंपनी ने 31 शहरों की लगभग 12,770 महिलाओं से CATI और CAPI विधियों से राय लेकर रिपोर्ट तैयार की।
देहरादून में करीब 9 लाख महिला आबादी के मुकाबले केवल 400 महिलाओं से राय ली गई। आयोगों का कहना है कि इतने छोटे सैम्पल साइज के आधार पर पूरे शहर को असुरक्षित बताना तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है।
देहरादून की हकीकत अलग
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रिपोर्ट के मुताबिक केवल 4% महिलाएं सुरक्षा ऐप्स का इस्तेमाल करती हैं, जबकि उत्तराखंड पुलिस के गौरा शक्ति ऐप पर 1.25 लाख महिलाएं रजिस्टर्ड हैं, जिनमें 16,649 महिलाएं सिर्फ देहरादून से हैं।
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महिलाएं डायल-112, सीएम हेल्पलाइन, पुलिस ऐप और सिटीजन पोर्टल जैसी सेवाओं का भी लगातार उपयोग कर रही हैं।
देहरादून पुलिस की महिला सुरक्षा व्यवस्था
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शहर में 14,000 से ज्यादा CCTV कैमरे सक्रिय हैं, जिनमें स्मार्ट सिटी कंट्रोल रूम और पुलिस कंट्रोल रूम से जुड़े कैमरे भी शामिल हैं।
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महिला हेल्प डेस्क, SOS बटन, पिंक बूथ, वन स्टॉप सेंटर और 13 गौरा चीता पेट्रोलिंग टीमें हर समय सक्रिय रहती हैं।
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अगस्त 2025 में डायल-112 पर कुल 12,354 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें सिर्फ 18% महिलाओं से जुड़ी थीं।
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छेड़छाड़ और लैंगिक हमलों की शिकायतें कुल महिला शिकायतों का 1% से भी कम रहीं।
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महिला मामलों में पुलिस का औसत रिस्पांस टाइम सिर्फ 13.33 मिनट है।
सर्वे की खामियां
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सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधताओं को नज़रअंदाज किया गया।
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छात्रों, स्थानीय निवासियों, पर्यटकों और कामकाजी महिलाओं की अलग-अलग धारणाओं को शामिल नहीं किया गया।
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मुंबई जैसे मेट्रो शहर और देहरादून जैसे शांत शहर की तुलना एक ही पैमाने पर कर दी गई।
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NCRB डेटा दर्शाता है कि देहरादून का अपराध दर मेट्रो शहरों से काफी कम है।
देहरादून अब भी सुरक्षित
महिला आयोग ने कहा कि देहरादून हमेशा से एक सुरक्षित और आकर्षक शहर रहा है। यहां बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान, विदेशी छात्र-छात्राएं और पर्यटक मौजूद हैं। लगातार बढ़ती छात्र संख्या और पर्यटन का रुझान इस बात का प्रमाण है कि देहरादून महिलाओं के लिए सुरक्षित शहरों में शामिल है।
महिला आयोग की अपील
राज्य महिला आयोग ने अपील की कि किसी भी नीति निर्माण से पहले ऐसे सर्वेक्षणों की पद्धति, सैम्पलिंग, प्रश्न निर्माण और सुरक्षा की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए। केवल अधूरे आंकड़ों के आधार पर पूरे शहर की छवि खराब करना सही नहीं है।












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