उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों पर करोड़ों रुपए खर्च करके भी स्कूलों हालत सुधर नहीं रही है इसलिए अब इन्हें गोद लेने की तैयारी की जा रही है l माध्यमिक शिक्षा का वार्षिक बजट 10 हज़ार करोड़ है प्रदेश के 16501 सरकारी स्कूलों में से कई स्कूल जर्जर हो चुके हैं l
बहुत से स्कूलों में बिजली पानी के साथ और कोई भी जरूरी सुविधाएं कम है l जबकि 10 हज़ार करोड़ का वार्षिक बजट सिर्फ बेसिक, जूनियर और माध्यमिक शिक्षा के लिए है उसके बावजूद भी स्कूलों का यह हाल है l इसमें 1100 करोड़ रुपये हर साल केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत दिए जा रहे हैं।
वहीं, 200 करोड़ मिड डे मील के तहत दिए जाते हैं। इसके बाद भी प्राथमिक स्तर पर 96 स्कूलों के पास भवन नहीं हैं, 934 में बालक शौचालय, 895 में बालिका शौचालय और 542 में पेयजल की सुविधा नहीं है। राज्य में 2864 बेसिक स्कूलों में रैंप नहीं है, 1609 में बिजली, 3433 में पुस्तकालय और 5633 में खेल मैदान नहीं है l
शिक्षा विभाग की ओर से इसके लिए नीति बनाई जा रही है। सामर्थ्यवान सरकारी स्कूलों को गोद लेकर इनमें उचित संसाधन मुहैया कराएंगे। यही नहीं वह अपने माता पिता या किसी अन्य स्वजन के नाम पर इन स्कूलों का नामकरण भी कर सकेंगे।
कुछ ऐसा ही हाल है माध्यमिक स्कूलों का भी है जिनमें 16 स्कूलों में भी भवन, 286 में बालक शौचालय, 114 में बालिका शौचालय, 81 में पेयजल, 57 में बिजली और 384 में पुस्तकालय नहीं है। 1072 में खेल मैदान, 1041 में एकीकृत विज्ञान प्रयोगशाला, 886 में भौतिक विज्ञान की प्रयोगशाला, 902 में रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला और 886 में जीव विज्ञान की प्रयोगशाला नहीं है।
शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी के मुताबिक स्कूलों को गोद लेने वाले व्यक्ति के माता-पिता या किसी अन्य के नाम पर स्कूल का नामकरण किया जाएगा। इसके बदले संबंधित को स्कूल पर आने वाले कुछ खर्च वहन करने होंगे। विभाग की ओर से इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसे कैबिनेट में लाया जाएगा।