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देहरादून। आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने बड़ा खुलासा किया है। उनका कहना है कि जौनसार क्षेत्र अनुसूचित जनजाति (ST) क्षेत्र नहीं है। बावजूद इसके, यहां ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को अवैध तरीके से अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र (ST Certificate) जारी किए जा रहे हैं।
नेगी का आरोप है कि यह सीधे तौर पर राष्ट्रपति के 24 जून 1967 के आदेश का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जौनसार क्षेत्र की जनता को नेताओं ने गुमराह किया और बेरोज़गार युवाओं के अधिकारों पर डाका डाला गया है।
लोकुर समिति रिपोर्ट और राष्ट्रपति आदेश का हवाला
एडवोकेट नेगी ने दस्तावेजों के आधार पर बताया कि 1965 में बनी लोकुर समिति ने स्पष्ट किया था कि उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखंड) में अनुसूचित जनजातियों की संख्या बेहद सीमित है।
24 जून 1967 को राष्ट्रपति के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित) की सिर्फ पाँच जनजातियाँ – भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी और थारू अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्य की गईं।
नेगी के मुताबिक, अध्यादेश में “जानसर” शब्द की टाइपिंग मिस्टेक को “जौनसारी” बताकर गलत फायदा उठाया गया और इसके आधार पर ब्राह्मणों, राजपूतों और खस्याओं को भी ST सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए।
उत्तराखंड में केवल पाँच जनजातियाँ मान्य
2000 में जब उत्तराखंड राज्य बना, तो वही सूची लागू हुई जो 1967 में मान्य थी।
आज भी प्रदेश में केवल पाँच जनजातियाँ ही ST मानी जाती हैं – भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी और थारू।
इसके बाद संसद में कोई संशोधन पारित नहीं हुआ है। इसलिए किसी नई जाति/समुदाय को ST का दर्जा नहीं मिल सकता।
गैरकानूनी तरीके से जारी हो रहे सर्टिफिकेट
नेगी ने कहा कि जौनसार के ब्राह्मणों और स्वर्ण राजपूतों को जारी किए जा रहे ST सर्टिफिकेट पूरी तरह अवैध हैं।
उन्होंने कहा कि इस धोखाधड़ी का सबसे ज्यादा नुकसान सामान्य वर्ग के युवाओं को उठाना पड़ रहा है। आरक्षण का गलत फायदा उठाकर जौनसार के नेता राजनीतिक लाभ ले रहे हैं।
संसद में भी साफ किया गया – जौनसार ST क्षेत्र नहीं
नेगी ने बताया कि 2003 और 2022 में संसद में पूछे गए सवालों के जवाब में भी केंद्र सरकार ने साफ किया था कि उत्तराखंड में केवल पाँच जनजातियाँ ही ST में शामिल हैं।
लोकसभा में 12 दिसंबर 2022 को पूछे गए प्रश्न संख्या 786 के जवाब में सरकार ने भी यही तथ्य दोहराया था।
यह एक बड़ी राजनीतिक ठगी – नेगी
एडवोकेट विकेश नेगी ने कहा –
“यह एक बड़ी राजनीतिक ठगी है। नेताओं ने जनता को गुमराह किया और योग्य बेरोज़गार युवाओं को सरकारी नौकरी से वंचित रखा। अब इस मामले की लड़ाई हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी जाएगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही इस घोटाले की शिकायत संबंधित विभागों और केंद्र सरकार से की जाएगी।
निष्कर्ष
जौनसार आरक्षण घोटाले के इस खुलासे ने पूरे उत्तराखंड की राजनीति और समाज में हलचल पैदा कर दी है। सवाल यह है कि आखिर कब तक सामान्य वर्ग के युवाओं के हक इस तरह छीने जाते रहेंगे और कब इस पर ठोस कार्रवाई होगी।
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