उत्तराखंड सरकार धीरे-धीरे पूरी तरीके से केंद्र पर निर्भर होती जा रही है। हालात यह हो गए हैं कि सरकार को अपने खर्चे के लिए भी अब उधार लेना होगा।
आपको बता दे कि उत्तराखंड प्रदेश की हालत वर्तमान में इतनी बेकार हो चुकी है कि आने वाला समय सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होने वाला है।
उत्तराखंड राज्य अर्थ एवं संख्या निदेशालय का ताजा बजट विश्लेषण बढ़ते खतरे की ओर इशारा कर रहा है। बजट विश्लेषण से साफ पता चल रहा है कि राज्य का जो राजस्व बढ़ रहा है वह राज्य के अपने स्रोतों से नहीं बल्कि केंद्र सरकार के रहमों करम से बढ़ रहा है।
केंद्र सरकार जून के महीने से जीएसटी का मुआवजा देना बंद करने वाली है, जिसके बाद सरकार को अपने खर्चे पूरे करने के लिए भी उधार लेना होगा।
धीरे-धीरे प्रदेश सरकार केंद्र सरकार पर निर्भर होती जा रही है दूसरी तरफ घरेलू ऋण भी बढ़ता जा रहा है।
प्रदेश पर घरेलू ऋण से राजस्व प्राप्तियां 2019-20 में 18.54 थी जो 2021-22 में बढ़कर 59.58 फीसद हो गई।
अगर बात करें पिछले तीन वित्तीय वर्षों की तो उत्तराखंड सरकार की राजस्व प्राप्तियां तो बढ़ी है, लेकिन उसमें खतरा इस बात का गहरा रहा है कि केंद्र सरकार का हिस्सा उन राजस्व प्राप्तियों में बढ़ता जा रहा है।
एक बजट विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में 3071429 लाख रुपए राजस्व प्राप्तियां थी। साथ ही इस राजस्व प्राप्ति में केंद्र से मिलने वाला हिस्सा 27.05 फीसदी था। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा 48.90 फीसद, ब्याज व संपत्ति से राजस्व का हिस्सा 1.82 अन्य स्त्रोतों का हिसाब 22.23% था।
वही बात करें 2020-21 की तो राजस्व प्राप्तियां 20.41 फीसद बढ़कर 3698247 लाख रुपए हो गई, जिसमें केंद्र से मिलने वाला हिस्सा बढ़कर 45.29 फीसद हो गया और इस बार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष करों का हिसाब घटकर 37.74 फीसद रह गया, ब्याज व संपत्ति से राजस्व का हिस्सा भी घटकर 1.44 फीसद हो गया व अन्य स्त्रोतों का हिस्सा भी घटकर 15.53 फीसद ही रह गया।
अब उसके बाद तीसरे वित्तीय वर्ष 2021 22 में राजस्व प्राप्तियां बढ़ कर 19.36% यानी 4414148 लाख रुपए हो गई, जिसमें राजस्व प्राप्तियों में केंद्र से मिलने वाला हिस्सा बढ़कर 46.81 फीसद हो गया। इस साल प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा मामूली बढ़कर 37.98 फीसद रह गया , ब्याज व संपत्तियों से राजस्व का हिस्सा बढ़कर 2.06 फीसद हो गया व अन्य सूत्रों का हिस्सा और घटकर 13.15 फीसद हो गया।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि उत्तराखंड सियासत को लेकर तो केंद्र पर निर्भर था ही लेकिन उत्तराखंड की वर्तमान हालत से आर्थिक स्थिति को लेकर भी केंद्र पर ही निर्भर हो गया है। केंद्र उत्तराखंड का बोझ आखिर कब तक अपने कंधों पर लेकर चलता रहेगा।