नैनीताल: एक बेहद असामान्य घटनाक्रम में उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामले की सुनवाई से पन्द्रहवें न्यायाधीश ने स्वयं को अलग कर लिया है। इस बार नैनीताल उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने सुनवाई से खुद को अलग करने का फैसला लिया।
क्या है मामला?
न्यायमूर्ति मैठाणी के समक्ष वह अपील लंबित थी, जिसमें राज्य सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश को चुनौती दी थी। कैट ने चतुर्वेदी की चुनावी याचिका पर दिए अपने आदेश में सदस्यता और नियुक्ति से जुड़े आदेश को गैरकानूनी ठहराकर रद्द किया था। इसी मामले में मैठाणी ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। आदेश में इस कदम का कोई कारण नहीं बताया गया।
15 बार न्यायाधीश और सदस्य अलग
अब तक संजीव चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से 15 न्यायाधीश/सदस्य स्वयं को अलग कर चुके हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 9 न्यायाधीश तथा कैट के 6 सदस्य शामिल हैं।
केवल 2023 से अब तक 5 अलग-अलग मामलों में 6 न्यायाधीशों और सदस्यों ने खुद को अलग किया है। यह स्थिति न्यायपालिका और प्रशासनिक न्यायाधिकरण के इतिहास में बेहद असामान्य मानी जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि 2024 में न्यायपालिका न केवल कमजोर दिखाई दी बल्कि यह स्थिति बेहद शर्मनाक भी है।
हालिया घटनाक्रम
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अप्रैल 2025: कैट के न्यायमूर्ति मनोज कुमार और आर.एन. सिंह ने खुद को अलग किया।
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अप्रैल 2025: एलपीयूएचसी के अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश मनिंदर सिंह ने भी दारमा माफी मामले की सुनवाई से खुद को अलग किया।
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फरवरी 2025: कैट के एक डिवीजन बेंच ने आदेश दिया कि भविष्य में चतुर्वेदी के मामले उनके समक्ष सूचीबद्ध न किए जाएं।
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फरवरी 2024: उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने प्रतिनियुक्ति से जुड़े मामले में खुद को अलग किया।
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मई 2023: उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने बिना कारण बताए सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
पुराने मामलों की झलक
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2018 से 2021 के बीच सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट, उत्तराखंड हाईकोर्ट और कैट के कई न्यायाधीश संजीव चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से अलग हो चुके हैं।
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इनमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और यू.यू. ललित, दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश एल. नरसिंह राव सहित कई नाम शामिल हैं।
निष्कर्ष
संजीव चतुर्वेदी के मामलों में अब तक का यह रिकॉर्ड बेहद असामान्य और चौंकाने वाला माना जा रहा है। बार-बार न्यायाधीशों का खुद को सुनवाई से अलग करना न्यायपालिका की निष्पक्षता और मजबूती पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
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