रिपोर्ट : कार्तिक उपाध्याय
देश भर में लोकसभा चुनाव नजदीक है और ऐसे में अगर बात उत्तराखंड की करें तो,उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में लगातार प्रतिदिन आंदोलन हो रहे हैं।
राज्य में बीते दिनों बजट सत्र का आयोजन किया गया,यह बजट सत्र 5 दिन चलना था परंतु चार दिन में ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
विधानसभा सत्र के दौरान देखने लायक यह था कि प्रतिदिन राज्य के विभिन्न विभागों के कर्मचारी विधानसभा घेराव के लिए पहुंचे,चाहे वह आंगनबाड़ी कार्यकत्रीयां हो,आशा कार्यकत्रियां हो,पीडब्ल्यूडी विभाग के कर्मचारी हो,सिंचाई एवं पेयजल संस्थान के कर्मचारी हो या फिर कोविड-19 बर्खास्त कर्मचारी हो।
एक तरफ सदन के भीतर सत्र जारी था,तो दूसरी तरफ बाहर सड़क पर सरकार का व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा था।
राज्य कितने बड़े आंदोलन के दौर से गुजर रहा है,कर्मचारी और युवाओं की स्थिति क्या है यह इस समय देहरादून के प्रत्येक चौराहे पर लगे यातायात पुलिस के बोर्डो में लिखें संदेश से समझा जा सकता है।
यातायात पुलिस ने सत्र के दौरान लिखा आंदोलन जुलूस रैली आदि के नागरिक वैकल्पिक मार्गों का प्रयोग करें।
वैसे तो उत्तराखंड राज्य एक लंबे जन आंदोलन के बाद मिला,अलग राज्य बनाने की अवधारणा थी कि उत्तराखंड के मूल निवासियों को उनका हक राज्य में मिले,चाहे वह सरकारी नौकरी हो या फिर यहां पर रोजगार।
परंतु राज्य बनने के बाद लगातार सबसे ज्यादा अधिकारों का हनन राज्य के मूल निवासियों का ही हुआ है,आज लगातार सरकारी नौकरी के लिए युवा सड़कों पर उतरा हुआ है,राज्य में लगातार भर्ती घोटाले हो रहे हैं,पेपर लीक हो रहे हैं लेकिन सरकार आज भी उनकी सीबीआई जांच करने को तैयार नहीं।
अब ऐसा लगने लगा है कि राज्य के युवा पढ़ लिखकर भी सक्षम नहीं हो पा रहे,यदि वह कुछ कर रहे हैं तो वह सिर्फ आंदोलन है,आंदोलन है,आंदोलन है।
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