ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
सूरज (पीपलधिंग चंपावत)
पर्वतीय क्षेत्र के उत्थान के उद्देश्य से शुरू हुआ जनआंदोलन अलग पर्वतीय राज्य बनाने के बाद खत्म हुआ,लेकिन राज्य के हालात सपनों में जैसे आंदोलनकारी द्वारा देखे गए थे आज धरातल पर वैसे बिल्कुल नहीं है।
राज्य बने 23 वर्ष पूर्ण हो जाने के बाद भी ना तो पर्वतीय क्षेत्र का विकास आंदोलनकारीयों की सोच की समान हो पाया और ना ही पर्वतीय समाज का उत्थान उनकी जरूरत और आवश्यकता के अनुसार।
आज उत्तराखंड में अलग राज्य होने से पूर्व उत्तर प्रदेश में रहने वाले वह लोग भी पहाड़ से पलायन को मजबूर हो गए हैं जिन्होंने कभी इन पहाड़ों के हिस्से को काटकर अपने आजीविका के लिए खेत बनाए थे,मजबूर इसलिए है क्योंकि आज भी ना पहाड़ में अच्छी शिक्षा है ना अच्छे अस्पताल ना हीं अच्छी सड़के और जीविका के लिए संसाधन रोजगार।
लगातार इन्हीं कारण से राज्य के निवासी पहाड़ से पलायन कर रहे हैं और शहरों में जा रहे हैं।
लेकिन चंपावत जिले के विकासखंड पाटी के अंतर्गत पीपलधींग गांव से 3 किलोमीटर दूर कोटेश्वर नदी के तट पर बने कुछ मंदिर,जिन्हें जनश्रुतियों में कत्यूरा काल में बना, बताया जाता है कि विभिन्न प्रकार के ढांचे में बने पत्थरों के यह मंदिर भी ऐसा लग रहा है जैसे पहाड़ में रहने वाले इंसानों के पलायन के बाद खंडहर हो चुके मकान को देखकर स्वयं अब अपना रूप बदल रहे हैं,स्वयं यह भी उन्हें खंडहरों में तब्दील होते नजर आ रहे हैं।
जो हाल यहां के मूल निवासियों के मकानों का है वहीं प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों का होता नजर आ रहा,पत्थर स्वयं गिर रहे हैं जर्जर अवस्था में अवशेष पड़े हैं।
भारतीय पुरातत्व विभाग को पता नहीं इसके बारे में जानकारी है या कभी उन्होंने इस पर कोई शोध किया है,लेकिन राज्य की सरकार को जरूरत है कि वह प्राचीन कालों में बनी उत्तराखंड के भीतर स्थापित इन ऐतिहासिक संरचनाओं मंदिरों के संरक्षण के लिए कुछ ना कुछ प्रयास करें।
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