ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
यूं तो अलग पर्वतीय राज्य उत्तराखंड मांगा था अच्छी शिक्षा अच्छा स्वास्थ्य हर घर रोजगार के लिए,लेकिन राज्य के नागरिकों ने जिनके हाथों पर्वतीय राज्य की सत्ता सौंपी वो हाथ पूरे शरीर सहित देहरादून और हल्द्वानी पलायन कर गए और यहीं कारण हैं पहाड़ों के गांवो में भारत के संविधान में लिखित हर मौलिक अधिकार का हनन खुले तौर पर स्वयं सरकार पर बैठे जिम्मेदार नेतागण करते हैं।
शिक्षा के मौलिक अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक को अच्छी शिक्षा मिलें यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं,और यह अधिकार पूरे भारत में लागू संविधान उत्तराखंड के नागरिकों को भी देता हैं।
लेकिन संघर्षों से मिले उत्तराखंड में शिक्षा के मौलिक अधिकार का हनन सरकारी विद्यालय में होता आसानी से देखा जाता है,जैसे ही आप मैदानी इलाकों से थोड़ा ऊपर पहाड़ों पर चढ़े तो आपको शिक्षा स्वास्थ्य की दुर्दशा नजर आने लगती है।
लेकिन दूरस्थ इलाकों की बात करें तो बहुत ही बुरा हाल है,बागेश्वर के कपकोट विधानसभा में पड़ने वाले लिती गांव के इंटर कॉलेज में आज भी कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए अंग्रेजी की कक्षा संचालित नहीं होती,यह पढ़ने में शायद आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा लेकिन यह सच है,गांव में बने इंटर कॉलेज में सिर्फ संस्कृत की कक्षा चल रही है और गांव के बच्चे मजबूर हैं या तो वह किसी अन्य विद्यालय में हाई स्कूल के बाद एडमिशन ले या फिर संस्कृत की ही पढ़ाई आगे पड़े।
कई किलोमीटर पैदल चलकर गांव के बच्चे विद्यालय तक पहुंचते हैं लेकिन हमारी असंवेदनशील राज्य सरकार शिक्षा के मौलिक अधिकार के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है बल्कि गंभीर क्या यह कह देना चाहिए कि सरकार स्वयं ही संविधान द्वारा नागरिक को दिए इस अधिकार का चीर हरण कर रही है।
जब ग्रामीणों से हमने बात करी तो उन्होंने कहा कि सरकार को दूरस्थ गांव में शिक्षा का स्तर मजबूत करना चाहिए था बल्कि उसके विपरीत यहां शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है,विद्यालय में विज्ञान वर्ग का ना होना कई बच्चों के भविष्य को बिगाड़ रहें है,आज होटल के मेन्यू कार्ड में तक अंग्रेजी में लिखा होता है लेकिन गांव के इंटर कॉलेज में अंग्रेजी विषय ही नहीं है,ऐसा लगता है आज भी कहीं ना कहीं जनपदों के दूरस्थ पहाड़ों में बसे हमारे जैसे कई गांव स्वतंत्र हुए ही नहीं।
लोकसभा चुनाव है और कुछ दिनों में नई सरकार का गठन होना है लेकिन इन दुर्गम दूरस्थ इलाकों को देखकर लगता है कि यही वह कारण है जो आज पहाड़ से पर्वतीय समाज को मैदानी इलाकों में मजबूर होकर ले जा रहे हैं।
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