ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
उत्तराखंड में पिछले वर्ष मूल निवासियों का एक बड़ा हुजूम देहरादून की सड़कों में देखने को मिला,यह हुजूम था एक मूल निवास स्वाभिमान रैली के रूप में और इसका आयोजन कर रही थी मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति।
इस बैनर के तले हुए आंदोलन में राज्य के तमाम सामाजिक,क्षेत्रीय राजनीतिक दल एवं अन्य क्षेत्र के लोगों ने बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया,राज्य आंदोलन के बाद पहली बार पर्वतीय समाज एकत्र नजर आया,आंदोलन में युवाओं की सहभागिता इस ओर इशारा कर रही थी कि कहीं ना कहीं उत्तराखंड में एक बदलाव देखने को मिलेगा।
मूल निवास के साथ भू कानून की मांग जोरो पर थी पर्वतीय समाज के हुजूम को देखकर कहीं ना कहीं धामी सरकार भी बैकफुट पर नजर आई अस्थाई रूप से जमीन पर खरीद फरोख्त की रोक लगाई गई मूल निवास के लिए बैठक हुई कमेटी का गठन हुआ,आंदोलन ऐसा था कि पहाड़ से लेकर तराई तक मूल निवास की ही चर्चा हर जगह होने लगी तराई के कुछ नेता इसके विरोध में सीधे श्वर में बोलने लगे,आंदोलन यही नहीं थमा देहरादून के बाद उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में इस रैली का आयोजन हुआ।
अब लोकसभा चुनाव की आदर्श आचार संहिता खत्म होने के बाद मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति फिर से इस मुद्दे पर मुखर होना शुरू हो गई,उन्होंने बीते दिनों देहरादून में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि जल्द ही आंदोलनकारियों के सपनों की और पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण में मूल निवास भू कानून स्वाभिमान रैली का आयोजन किया जाएगा।
लेकिन अब अचानक कल देहरादून से एक राष्ट्रीय अखबार में छपी खबर की अगर बात करें तो उत्तराखंड का क्रांति दल इस बार गैरसैंण में आयोजित होने वाली इस रैली में प्रतिभाग नहीं करेगी,खबर के अनुसार उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष पूरन सिंह कठैत का कहना है कि गैरसैंण में आयोजित होने वाली इस रैली से उत्तराखंड क्रांति दल का कोई वास्ता नहीं है,मूल निवास भू कानून उत्तराखंड क्रांति दल का मुद्दा है वह इसे अपने तरीके से उठाएगी लेकिन पूरन सिंह कठैत के दिए एक यह बयान ने तब शोर मचा दिया जब उन्होंने यह भी कहा कि मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के आंदोलन से जुड़े उत्तराखंड क्रांति दल के पदाधिकारी को चेतावनी दी जाएगी और नोटिस भेजे जाएंगे।
अब इस बयान के बाद उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष और यूकेडी का बैनर फिर युवाओं के सीधे निशाने में आ चुका है,युवा कह रहे हैं क्या उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़े हुए लोग कोई बंधुआ मजदूर हैं,यदि मूल निवास भू कानून की बात को लेकर कहीं आंदोलन होता है या रैली होती है तो उसमें प्रतिभाग करना कैसे गलत है,यदि उत्तराखंड क्रांति दल इस मुद्दे को मजबूती से उठाती तो आज लोग यूकेडी के साथ होते लेकिन यूकेडी ने स्वयं अपना विश्वास खोया है और यूकेडी के इस तरह के निर्णय ही उन्हें हाशिए पर लाएं हैं।
आपको बता दे कि मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े पदाधिकारी उत्तराखंड क्रांति दल से भी जुड़े हैं,वह उक्रांद में सिर्फ कार्यकर्ता नहीं है बल्कि उक्रांद के प्रकोष्ठों के दायित्व भी उनके पास है यही कारण है कि उत्तराखंड क्रांति दल को लग रहा है की उनसे अधिक लोकप्रिय मूल निवास भू कानून संघर्ष समन्वय समिति का बैनर हो रहा है और यूकेडी के केंद्रीय नेताओं से ज्यादा लोकप्रियता भी इस समिति और आंदोलन से जुड़े युवाओं को मिल रही है,उक्रांद का इतिहास हैं जब जब उक्रांद से जुड़े कोई युवा थोड़ा मजबूत हुए हैं तो यूकेडी ने उन्हें किनारे किया हैं आरोप यह भी हैं की कई आंदोलनों को उक्रांद ने पूर्व में भी कमजोर किया हैं।
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