उत्तराखंड लोक सेवा आयोग हरिद्वार द्वारा दिव्यांग श्रेणी के विभिन्न 57 पदों बाहर किया है जिसमें कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभियंता, सहायक अभियोजन अधिकारी, पीसीएस परीक्षा मुख्य है। जिससे उत्तराखंड में दिव्यांगों का सरकार एवम लोक सेवा आयोग हरिद्वार के प्रति रोष उत्पन्न हो गया है।
दिव्यांग अभ्यर्थियों का कहना है कि लोक सेवा आयोग हरिद्वार द्वारा कई वर्षों से दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम का प्रयोग न कर मनमाने तरीके से दिव्यांग श्रेणी के पदों को वर्गवार विभाजित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त दिव्यांग उप श्रेणी का अभ्यर्थी न मिलने पर दूसरी दिव्यांग उप श्रेणी के अभ्यर्थी से पदों को भरने का नियम है उसको भी आयोग अनदेखी कर रहा है।
जिससे कि दिव्यांग श्रेणी की सीटें रिक्त जा रही है।
जिसका फायदा उठाकर आयोग उन रिक्त पदों अग्रेनित कर रहा है एवम दिव्यांगों के पद मृत हो रहे हैं जबकि हजारों की संख्या में शिक्षित दिव्यांग अभ्यर्थी है।
आयोग के मनमाने नियमों के खिलाफ दिव्यांग अभ्यर्थियों द्वारा उच्च न्यायालय में कई याचिका दायर की जा चुकी है जिसका आयोग समय पर जवाब नहीं दे रहा है। जबकि उच्च न्यायालय के जिस आदेश के तहत आयोग ने दिव्यांग के पद वापस कार्मिक विभाग को भेजे हैं वो आदेश भी पुराना है, उस पर आयोग द्वारा उच्च न्यायालय में शुद्धि पत्र जारी करने का निवेदन किया गया था जिसे उच्च न्यायालय द्वारा रिव्यू के बाद लोक सेवा आयोग को शुद्धि पत्र के साथ दिव्यांग अभ्यर्थी को शामिल करने की बात की गई है लेकिन लोक सेवा आयोग ने उस आदेश को ही दरकिनार कर दिया है।
उच्च न्यायालय के जिस असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा के आदेश के तहत लोक सेवा आयोग ने अन्य भर्ती परीक्षा के दिव्यांग पदों को बाहर किया है उन पदों की परीक्षाओं की प्रकृति भी अलग अलग है।
जहां एक और असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा में केवल मेरिट के आधार पर चयन होता है वहीं जिन परीक्षा में दिव्यांग के पदों को वापस लौटाया गया है उसमें 5-5 परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर दिव्यांग अभ्यर्थी क्वालीफाई हुए हैं ऐसे में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग पर प्रश्नचिन्ह ये भी उठता है कि एक ओर 5 परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने वाले दिव्यांग को बाहर किया गया है वहीं दूसरी ओर असिस्टेंट प्रोफेसर जिसमें मेरिट के आधार पर इंटरव्यू के लिए चयन होता है उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की गलती और मनमाने नियम के कारण ही प्रवक्ता भर्ती परीक्षा 2020 में भी दिव्यांग के 122 पद आयोग द्वारा रिक्त भेजे गए हैं जिसका प्रकरण भी उच्च न्यायालय में लंबित है।
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग और उत्तराखंड सरकार का दिव्यांगों के प्रति उदासीन रवैया के कारण उत्तराखंड का दिव्यांग स्वयं को ठगा महसूस कर रहा है जिससे दिव्यांग सहित युवाओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।