तो क्या पुरानी पेंशन का मुद्दा भी प्रभावित करेगा,लोकसभा 2024 का चुनाव
रिपोर्ट : कार्तिक उपाध्याय
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो राजनीतिक दलों के लिए एवं वर्तमान सरकार का संचालन कर रही भारतीय जनता पार्टी के लिए कई मुद्दे ऐसे बन चुके हैं जिनका जवाब आचार संहिता से पहले खोजना सरकार के लिए कहीं ना कहीं मजबूरी बनता नजर आ रहा है।
अब सोशल मीडिया में राज्य एवं केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा पुनः एक बार पोस्ट के जरिए सीधे सरकार से यह सवाल किया जा रहा है कि *”जब मेरे वोट से मेरी पेंशन नहीं,तो मेरे वोट से तुम्हारी पेंशन क्यों”?*
पुरानी पेंशन आज का मुद्दा नहीं है बल्कि विभिन्न राज्य एवं केंद्र के कर्मचारी इसकी मांग एक लंबे समय से करते आ रहे हैं,पुरानी पेंशन की मांग करने वाले कर्मचारियों का स्पष्ट कहना है कि यह उनकी मांग नहीं बल्कि उनका अधिकार है सरकार उन्हें उनके अधिकार से आज तक वंचित रखे हुए हैं।
यदि बात पुरानी पेंशन की की जाए तो वर्ष 2004 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेई सरकार द्वारा इस पेंशन को बंद कर दिया गया था,इसके बाद से कर्मचारियों ने लगातार इसके लिए आवाज उठाई है।
यदि बात पिछले वर्ष की की जाए तो दिल्ली में फिर एक बार इस मांग को लेकर 10 अगस्त 2023 को व्यापक संख्या में कर्मचारी उतरे थे,उसके बाद पुरानी पेंशन शंखनाथ रैली का आयोजन अक्टूबर महीने में किया गया था।
अब जैसे-जैसे चुनाव आ रहे हैं कर्मचारी पुनः सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार के सामने अपनी बात रख रही है,इससे पूर्व आंदोलन के दौरान भी एक बार यह बात उठने लगी थी कि सरकार इस पर संशोधन करने जा रही है,पर पुरानी पेंशन की मांग करने वाले आंदोलनकरियों द्वारा इसे डस्टबिन करार दिया गया और कहा गया की 2004 की गलती 2024 में दोहराने का काम हो रहा है।
एक नजर डालते हैं पुरानी पेंशन पर और इससे क्या फायदा होगा
अगर दोनों पेंशन स्कीमों को आम आदमी की नजर से देखा जाए,तो पुरानी पेंशन स्कीम से फायदे जरूर नजर आते हैं. पुरानी पेंशन स्कीम के तहत रिटायरमेंट के बाद एक फिक्स अमाउंट तय हो जाता है,इसके साथ ही ग्रेच्युटी और महंगाई भत्ता भी साल में दो बार बढ़ता है,तो वहीं इसके साथ ही सैलरी से और कोई पैसा नहीं कटता,वहीं नई पेंशन स्कीम की बात की जाए तो उसमें भविष्य को लेकर सुरक्षा नहीं दिखाई देती और साथ ही महंगाई बढ़ने पर महंगाई भत्ते का भी प्रावधान नहीं है, जिससे यकीनन आम आदमी के लिए मुश्किल जरूर होती हैं,इसीलिए पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से बहाल करने की मांग लगातार उठ रही है।L
ओल्ड पेंशन स्कीम की बात करें तो इसमें कर्मचारियों को उसकी नौकरी के आखिरी सैलरी का 50 फ़ीसदी हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता था. मतलब की किसी की अगर 1 लाख बैसिक सैलरी थी. तो रिटायरमेंट के वक्त उसे ₹50000 पेंशन के दिए जाते थे. इसके लिए कोई कटौती भी नहीं की जाती थी. और महंगाई के साथ हर 6 महीने 1 साल में महंगाई भत्ता भी जुड़ जाया करता था. यानी की सरकार जैसे महंगाई पर महंगाई भत्ता बढ़ती है. हर साल उसका असर वर्तमान में कार्य कर रहे कर्मचारियों की सैलरी पर पड़ता है. उसी प्रकार से पेंशन भोगियों की पेंशन पर भी इसका असर पड़ता था,जिसे साल 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने इस पेंशन व्यवस्था को बंद कर दिया था।
अब देखना होगा कि आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में पुरानी पेंशन की मांग का यह मुद्दा कितना चुनाव को प्रभावित करता है,वर्तमान सत्तादारी दल को इसका क्या नुकसान होता है एवं विपक्ष इसका कितना फायदा उठा पता है।
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