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कैसे हुआ बीजेपी का बड़ा नुकसान?
इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के लिए जीत नाक का सवाल बनी हुई थी। पार्टी ने अपने वरिष्ठ प्रचारकों की पूरी फौज उतार दी थी, जिनमें सात बार के विधायक और पूर्व मंत्री बंशीधर भगत, वर्तमान सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट सहित कई बड़े चेहरे शामिल थे। बावजूद इसके बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।
इस हार की मुख्य वजह बनी – पार्टी के भीतर की बगावत। बीजेपी के जिला मंत्री रह चुके प्रमोद बोरा ने पार्टी से बगावत कर अपनी पत्नी छवि बोरा कांडपाल को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारा। पार्टी ने अनुशासनहीनता के चलते प्रमोद बोरा को जिला मंत्री पद से हटा दिया, लेकिन वे अब भी भाजपा के सदस्य हैं।
शिक्षिका से नेता बनीं छवि बोरा
छवि बोरा कांडपाल हल्द्वानी महिला महाविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थीं। उन्होंने शिक्षा जगत को अलविदा कहकर पहली बार राजनीति में कदम रखा और चुनाव लड़ा। पहले राउंड की मतगणना से ही उन्होंने बढ़त बना ली थी, जो अंत तक कायम रही। जीत के बाद छवि बोरा के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई और ढोल-नगाड़ों के साथ विजय का जश्न मनाया गया।
छवि बोरा का विजयी संदेश
चुनाव जीतने के बाद छवि बोरा कांडपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा,
“मैं समाज सेवा के उद्देश्य से चुनाव मैदान में उतरी थी। जनता ने जो भरोसा दिखाया, उसके लिए मैं आभारी हूं। मैंने जो वादे किए हैं, उन्हें पूरी निष्ठा से पूरा करने की कोशिश करूंगी।”
उन्होंने आगे कहा कि आने वाले समय में वे जिला पंचायत अध्यक्ष पद की दौड़ में भी शामिल होंगी।
सीएम धामी को जताया आभार
जीत के बाद छवि बोरा और उनके पति प्रमोद बोरा ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आभार व्यक्त किया। यह राजनीतिक संकेत कई मायनों में अहम माना जा रहा है, खासकर ऐसे वक्त में जब उन्होंने बीजेपी के खिलाफ बगावत कर चुनाव लड़ा।
निष्कर्ष:
नैनीताल जिले की सबसे अहम पंचायत सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना, संगठन के भीतर पनपती बगावत और रणनीतिक असफलताओं की ओर संकेत करता है। वहीं छवि बोरा कांडपाल की जीत, महिला नेतृत्व और नये राजनीतिक चेहरों के उभार को भी दर्शाती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या छवि बोरा जिला पंचायत अध्यक्ष की रेस में बाज़ी मारती हैं या नहीं।
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