न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार का यह प्रतिबंध “वैधानिक अधिकार के बिना” और “अधिकार का गलत प्रयोग” है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उत्तराखंड स्कूल शिक्षा अधिनियम, 2006 के अनुसार, भर्ती प्रक्रिया सीधे प्रबंधन समिति और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में आती है, न कि सरकार के हस्तक्षेप में।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि पिछले पांच वर्षों में भर्ती पर रोक के कारण इन स्कूलों में कई शिक्षकों और कर्मचारियों के पद खाली पड़े हैं, जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। उन्होंने शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का हवाला देते हुए कहा कि राज्य को प्रत्येक स्कूल में उचित छात्र-शिक्षक अनुपात सुनिश्चित करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। शिक्षकों की कमी इस अधिकार का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार भर्ती प्रक्रिया में खामियों को सुधारने के लिए निर्देश जारी कर सकती है, लेकिन पूरी प्रक्रिया पर रोक नहीं लगा सकती।
न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर खाली पदों पर भर्ती के लिए आवेदन स्वीकार करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
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