देहरादून: उत्तराखंड के 1500 वनकर्मियों ने कहा कि हमे या तो हथियार चलाने की परमिशन दे दो या फिर हमसे हथियार वापस ले लो क्योंकि कई वनकर्मियों पर तस्कर, शिकारी और वन्यजीवों पर आत्मरक्षा में फायरिंग के केस दर्ज हुए हैं।
साथ ही इसमें से कुछ मामलों में वनकर्मियों को सजा भी हो चुकी है। कारण यह रहा कि वे इसे आत्मरक्षा भी साबित नहीं कर सके।
आपको बता दे कि विभिन्न नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व, सेंक्चुरी सहित तमाम डिवीजनों में तैनात डेढ़ हजार से ज्यादा फील्डकर्मी सरकारी असलहे रखना नहीं चाहते हैं। उन्होंने वन विभाग से स्पष्ट कहा है कि या तो हथियार वापस लिए जाएं या इन्हें चलाने की परमिशन दी जाए। फील्ड कर्मियों को हथियार दिए गए हैं लेकिन उन्हें चलाने की स्पष्ट परमिशन नहीं है।
आपको बता दे कि पिछले कुछ वर्षों में कई वनकर्मियों पर तस्कर, शिकारी और वन्यजीवों पर आत्मरक्षा में फायरिंग के केस दर्ज हुए हैं। इसमें से कुछ मामलों में वनकर्मियों को सजा भी हो चुकी है। कारण यह रहा कि वे इसे आत्मरक्षा भी साबित नहीं कर सके। जबकि वनकर्मियों को पुलिस की तरह सुरक्षा के लिए किसी पर हथियार चलाने का अधिकार नहीं है। वे तस्करों से मुठभेड़ के दौरान भी बिना परमिशन फायरिंग नहीं कर सकते।
जबकि कई बार तस्कर प्रतिबंधित कोर जोन तक में घुस जाते हैं। जबकि इन पर भी फायरिंग का हक तभी है जब तक ये वनकर्मियों के करीब ना आ जाएं। इसे लेकर वन कर्मचारियों में रोष है। उन्होंने मांग उठाई है कि या तो हथियार चलाने की स्पष्ट परिस्थितियों के साथ आदेश किए जाएं, या सारे हथियार वापस लिए जाएं।
स्वरूप चंद रमोला, प्रदेश अध्यक्ष सहायक वन कर्मचारी संघ ने कहा, फील्ड कर्मियों को हथियार तो दिए गए हैं, लेकिन चलाने की स्पष्ट परमिशन नहीं है। आम लाइसेंसी की तरह ही केवल आत्मरक्षा में चलाने की परमिशन है। पर, फील्ड में ड्यूटी के दौरान परिस्थितियां भिन्न होती हैं। तस्कर सामने दिखें और दूर से हम पर फायर करें तो हम फायर नहीं कर पाते। जेल का डर होता है। विभाग या तो हथि चलाने का स्पष्ट आदेश करे या हथियार वापस ले।
पीसीसीएफ विनोद सिंहल ने कहा, हथियार चलाने के लिए ऐक्ट और शासनादेश के जरिए कई आदेश किए गए हैं। पर, वनकर्मी इससे संतुष्ट नहीं हैं और स्पष्ट आदेश की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर शासन स्तर पर वार्ता की जाएगी, ताकि इस समस्या का समाधान निकल सके।