उत्तराखंड भर्ती नियमावली बदलने से बेरोजगार युवा खासे निराश हो गए है।
मत्स्य निरीक्षक के एक पद के सापेक्ष केवल चार युवाओं ने ही आवेदन किया, जबकि विज्ञान विषय में लाखों स्तानक व इस्नातकोर युवा बेरोजगार भटक रहे है।
28 पदों के सापेक्ष केवल 104 युवाओं ने ही आवेदन किया। जबकि पीसीएस परीक्षा में एक पद के सापेक्ष लगभग 700 लोगो ने आवेदन किया और पुलिस कांस्टेबल भर्ती में एक पद के सापेक्ष लगभग 150 युवाओं ने आवेदन किया।
दरअसल विभाग में 2006 से पूर्व भर्ती का यही क्राइटेरिया था । उस समय की नियुक्तियों का परिणाम अगर आप उठाएँगे तो आपको दिखाई देगा कि 95 प्रतिशत से अधिक नियुक्तियाँ उ0प्र0 और बिहार को चली गईं। उस समय तत्कालीन काँग्रेस सरकार थी।
आपको बता दे कि नियुक्तियों में जब पद की योग्यता B.SC.(ZBC) AND/OR M.SC.(ZOOLOGY) की गई तथा इस पद को समूह ‘ग’ के तहत भरा गया तो 90 % से अधिक नियुक्तियों में प्रदेश के अपने विश्वविद्यालयों के स्थानीय बच्चे इन परीक्षाओं में सफल होकर नियुक्त हुए थे।
जब प्रदेश के अधिकाँश वि.वि. मत्स्यिकी में डिग्री या डिप्लोमा प्रदान ही नहीं करते तो साफ सी बात है कि यहाँ के बच्चे उस प्रतियोगिता से ही बाहर हो जाते थे। जब इसकी योग्यता में B.SC /M.SC को मान्य किया गया तो इसके परिणामस्वरूप हमारे वि.वि के दूरदराज के छात्रों ने भी अपनी मेहनत और लगन के दम पर इसमें नियुक्ति हासिल की।
आपको बता दे कि अब विभाग ने फिर से पुरानी मत्स्यिकी की योग्यता को अनिवार्य कर दिया है।
अब सवाल यह उठता है कि विभाग को अचानक यह निर्णय क्यूँ लेना पड़ रहा है ।
आपको बता दे कि यदि विभाग यह निर्णय लेता है तो प्रदेश के 99% विश्वविद्यालयों में विज्ञान विषय से अध्ययनरत छात्र प्रतियोगिता से बाहर हो जाएँगे।
इससे सीधे सीधे पूर्व की भाँति कुछ विशेष संस्थानों के बच्चे ही इस पद हेतु अर्ह रह जाएँगे।
और दूर दराज का आम छात्र जो कड़ी मेहनत और अल्प संसाधनों के साथ विज्ञान विषय को पढ़ता है, वह इस नियुक्ति के योग्य ही नहीं रहेगा।
दूसरी बात… क्या विभाग यह साबित कर सकता है कि पूर्व में विशेषज्ञ भर्ती और बाद में समूह ग के तहत BSC/MSC द्वारा नियुक्त कार्मिकों में कार्य निष्पादन स्तर पर कोई विशेष अंतर देखा गया?
क्या यह किसी विशेष वर्ग को फायदा पहुँचाने और स्थानीय युवाओं से एक रोजगार के अवसर को छीनने के समान नहीं है?
क्या विभाग और सरकार में बैठे अधिकारी और सचिव महोदय यह नहीं जानते कि आपके प्रदेश के विश्वविद्यालयों में मत्स्यिकी जैसा विषय उपलब्ध ही नहीं है। यहाँ के छात्र को B.SC करने के लिए भी घर से दूर कमरा लेकर रहना पड़ता है, तब जाकर वह अपनी डिग्री हासिल करता है। ऐसी परिस्थिति में अचानक किसी निर्णय को बिना किसी जमीनी हकीकत के लागू कर देना कहाँ तक उचित है।