ब्यूरो न्यूज़ उत्तराखंड ब्रॉडकास्ट
उत्तराखंड एक ऐसा राज्य हैं जहां के स्थानीय नेता जब प्रदेश के भीतर दौरा कर रहें होते हैं तो उनकी इतनी चर्चा नहीं होती जितनी की तब होने लगती हैं जब वह देश की राजधानी में जाते हैं।
पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड के नेतागण दिल्ली दरबार में हाजरी लगा रहें हैं पहले सीएम धामी फिर धन सिंह रावत और अब तीरथ रावत,हालांकि इन सभी मुलाकातों का उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें तीसरी बार पीएम बनने की बधाई देना और राजनीतिक शिष्टाचार भेंट बताया जा रहा हैं।
लेकिन एक कहावत हैं की दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पिता हैं,कुछ ऐसा ही हाल हैं प्रदेश की एक कुर्सी का जिसे अब मुख्य सेवक की कुर्सी कहा जाने लगा हैं,उत्तराखंड में हर सरकार में इस कुर्सी पर बैठे सेवक को समय से पहले ही बदलने की एक राजनीतिक प्रथा हैं और यह काम दिल्ली के दरबार से होता आया हैं।
तो अब राज्य के नेता जब भी दिल्ली पहुंचते हैं तो चर्चाएं नेतृत्व परिवर्तन की होने लगती हैं जिसकी आदत राज्य को राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा लगाई गई हैं,आज दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की मुलाकात के बाद ठंडे पहाड़ों वाले प्रदेश में राजनीति गर्मा रही हैं।
पिछले कुछ दिनों में सीएम धामी केदारनाथ धाम दिल्ली ब्रांच प्रकरण में प्रदेश भर में चर्चित हुए हैं चर्चित लिखने से बेहतर हैं हम लिखे जबरदस्त ट्रोल हुए हैं,उसके बाद से राज्य में धीरे धीरे सीएम बदलने की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं,धरातल पर!
हालांकि भाजपा ने इसे सीधे नकार दिया हैं लेकिन ये सब पहले भी होता आया हैं,असल में उत्तराखंड को राजनीति और मुख्यमंत्री की कुर्सी गड़वाल कुमाऊं की राजनीतिक चर्चाओं पर टिकी रहती हैं और इस बीच यह चर्चा नुक्कड़ों पर बनी चाय की दुकानों में आम नागरिक दिखते बुद्धिजीवी वर्ग के बीच जो रही हैं की गड़वाल के कुछ विधायक मुख्यमंत्री धामी से बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं या यूं कहें गड़वाल मंडल के कुछ नेताओं को अपेक्षा महत्वकांक्षा पर सीएम धामी खरे नहीं उतर पाएं हैं,हालांकि कुमाऊं में चर्चा प्रधानमंत्री का धामी पर आशीर्वाद होने की इस कारण उनकी कुर्सी सुरक्षित मानी जा रही।
लेकिन दिल्ली मुलाकात के साथ साथ प्रदेश में सीएम आवास कार्यालयों में विधायकों का मिलना भी चर्चा में बना हुआ हैं राजनीतिक बुद्धि जीवी कहते हैं अप्रत्यक्ष रूप से सीएम धामी अपने सहयोगी साथियों को पहचान कर रहें हैं।
लेकिन मंगलौर और बद्रीनाथ उपचुनाव हार जाने के बाद और अब सामने केदारनाथ का उपचुनाव होने के कारण नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज होने का कारण हैं और केदारनाथ धाम दिल्ली ब्रांच और अचानक दिल्ली में हो रही मुलाकातों के बाद कयास लगाने लाजमी हैं।
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