वृद्ध व्यक्ति हर परिवार का वह छायादार वृक्ष होता है जिसके फल तो सब खाना चाहते लेकिन उसे अपने आंगन में रखना कोई नहीं चाहता।
हर परिवार की सुख और शांति तभी संभव है जब उस परिवार के हर सदस्य को मान, सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा हो सके। आज के इस आधुनिक युग में एकल परिवार का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है एवं संयुक्त परिवार एक इतिहास बनता जा रहा है भारतीय समाज में। हमारे समाज के बहुत सारी ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिसको आज लोग पसंद नहीं कर रहे हैं एवं इस स्वतंत्र भारत में आधुनिकीकरण होने की वजह से सारी संस्कृति एवं धरोहर वाली जो सभ्यता एवं परंपरागत सिस्टम था वह सब टूट चुका है। हर परिवार में आपको ऐसी कहानी सुनने को अब मिलेगी जिसमें बच्चों के बड़े होते ही मां-बाप अकेले पीछे छूट जाते हैं। उनके बच्चे अन्य शहरों में एवं अन्य देशों में कामकाज की तलाश में चले जाते हैं! आज हमारे बहुआयामी समाज के जो संस्कृति बदल रही है उसमें बच्चों के साथ-साथ मां-बाप में भी बदलाव हो रहे हैं। बदलाव एक प्रक्रिया है परंतु ऐसे बदलाव जो संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं को तार-तार कर बदल रही हो ऐसी बदलाव हमें नहीं चाहिए, हम हिंदुस्तान की धरती पर हमेशा से अपने वृद्ध मां-बाप की रक्षा करते आए हैं। उनके आशीर्वाद लेते आए हैं एवं हर शुभ काम करने से पहले हम उनके चरण स्पर्श करना कभी नहीं भूले हैं। हमें पता होता था कि हमारा भला कोई चाहे ना चाहे परंतु ईश्वर और हमारे मां-बाप जरूर हमारे शुभ कामों में आशीर्वाद देकर हमें विजय बनाएंगे।
पूरे विश्व में अब वृद्धा आश्रम की संस्कृति फैलती जा रही है बूढ़े मां बाप के लिए अब अनगिनत आश्रमों का निर्माण हो रहा है, कई तो बिल्कुल प्राइवेट कंपनियों की तरह संचालित हो रहे हैं। कई आश्रमों में वृद्ध व्यक्ति अपने पूरे जीवन की कमाई, धन- दौलत दान में देकर उस आश्रम में प्रवेश कर अपना जीवन गुजारते हैं और वहीं पर मृत्युलोक को प्राप्त हो जाते हैं। क्या कोई सोच सकता है कि ऐसी परिस्थिति वृद्ध व्यक्तियों के साथ अब क्यों दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है? यह बिल्कुल आधुनिक समाज के मुंह पर एक तमाचा है जहां पर बूढ़े मां बाप को देख रेख करने के लिए कोई भी परिवार का सदस्य आगे नहीं आ रहा है। चाहे वह व्यक्ति कि आय निम्न , मध्यम एवं उच्च वर्ग का ही क्यों ना हो सब के हाल एक जैसे ही है, सबका बुढापा उसी लचर अवस्था में गुजरती है जिस व्यवस्था का शिकार आज के समय में पूरे समाज हो चुका है। अगर किसी की पत्नी मर जाए और वह बुड्ढा व्यक्ति अकेला हो उस हालात में उस बूढ़े व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है ना उसको घर में उसके बच्चे रखना चाहते ना ही आश्रमों में पूरा सहयोग मिलता है।
मैं 84 साल का एक वृद्ध व्यक्ति तमाम हालातों से गुजरा हुआ , सिस्टम का मारा हुआ ,दर-दर की ठोकरें खाता हुआ , मेरे नौजवान बेटे की हत्या हो जाती है और मुझे घर से निकाल दिया जाता है, अगर मेरा कोई सहयोगी ना हो तो मेरी भी हालात उन्हीं बूढ़े लाचार व्यक्ति की तरह ही हो जाएगी जो दर-दर की ठोकरें खाते हुए कहीं सड़क किनारे, नदी के किनारे या फिर वृद्धा आश्रम में भटकता हुआ मिलेगा। उत्तराखंड के परिपेक्ष में देखे तो आप देख सकते हैं कि शहर में अनगिनत ऐसे समाचार आना शुरू हो गए हैं जिसमें वृद्ध मां बाप के धन दौलत को उसके अपने बच्चे बेटे- बेटियां एवं बहू हथिया लेते हैं और उस बूढ़े मां बाप को लात मारकर घर से बाहर फेंक देते हैं। मुझे लगता है कि हर वृद्ध व्यक्ति को अपने कमाए हुए धन- दौलत एवं संपत्तियों में अपने परिवार को किस रूप में कितना देना है उसे जवानी में ही सोच लेना चाहिए। भावनाओं में बहकर अपनी संपत्तियों का बंटवारा नहीं करना चाहिए एवं कानून व्यवस्था के सलाह मशवरा लेते हुए हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह अपना वसीयत जरूर बनाए, वह डिसाइड करें कि आपको अपनी संपत्ति में से कितने बहू, बेटे -बेटियों को देना है और कितना समाज को सहयोग के रूप में दान करना है। आवश्यकता से अधिक संपत्ति अर्जित करने की कोशिश नहीं करें तो बेहतर है, परंतु अगर आपके पास आवश्यकता से अधिक संपत्ति है तो आपको अपने विवेक के अनुसार घर परिवार के साथ साथ समाज को भी उस संपत्ति में अधिकार देना चाहिए, ऐसे अनेकों शुभ कार्य संस्थाओं द्वारा संचालित की जाती है, सरकारों द्वारा भी संचालित की जाती है जहां पर आप अपनी संपत्ति को दान देकर उस व्यवस्था को बनाए रखने में सहयोग कर सकते हैं और आप अपनी संपत्ति का सदुपयोग कर सकते हैं। अगर आपके पास आवश्यकता से अधिक संपत्ति है तो आप यह सुनिश्चित कर लो, परिवार के लोग या फिर कोई बाहरी लोग आप पर नजर जरूर बनाए रखा होगा या तो वह आपकी मृत्यु का इंतजार कर रहा होगा या फिर आप को मृत्यु के मुंह में धकेल दिया जाएगा जिससे आपकी संपत्ति को हड़प लिया जाए! अब तो वृद्ध व्यक्ति को अकेले घर में रहना भी मुश्किल है आप आए दिन यह भी देखते होंगे समाचार पत्रों में कि वृद्ध व्यक्ति को किसी ने धारदार हथियार से गला काट दिया, किसी ने छत से उसे नीचे फेंक दिया, किसी ने उसे सर पर मार कर उसकी हत्या कर दी।
उत्तराखंड में वृद्ध व्यक्तियों की अवस्थाओं पर चिंतन मनन एवं विचार करना अब अति आवश्यक हो गया है। हर वृद्ध मां-बाप अब डर के साए में जी रहे हैं कि बच्चे उनके साथ क्या सलूक करेंगे? धन दौलत और संपत्ति कमाने में पूरे जीवन व्यतीत कर चुके यह वृद्धि मां-बाप अब उसी संपत्ति को अपने जीवन के लिए खतरा महसूस कर रहे हैं। ज्यादातर व्यक्ति पूरे जीवन अपने संपत्तियों पर एवं आय पर सरकार को टैक्स देते आ रहे हैं एवं वे सभी लगभग सारी प्रक्रियाओं को पूरा कर अपने जीवन की कुल कमाई का लगभग 10 से 15 परसेंट सरकार को ही दे रहे हैं ऐसी अवस्था में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि अगर उसकी कोई घर परिवार में सुने या ना सुने परंतु उसके लिए कोई ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जहां पर वृद्ध व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करें, अगर वह घर से तिरस्कृत होकर निकाल दिया जाता है तो सरकार को शरण देने के लिए कोई व्यवस्था बनानी चाहिए। आने वाले दिनों में मुझे ऐसा लगता है कि वृद्ध व्यक्तियों के साथ बहुत कुछ होने वाला है और यह सावधानी आज के नौजवानों को बरतनी चाहिए और हमारी अवस्थाओं से सीख लेनी चाहिए कि उनका भी हसरत एक दिन इस तरह से ना हो इसीलिए कंधे से कंधा मिलाकर ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने में युवा वर्ग मदद करें जिससे कि सामाजिक ढांचा में ज्यादा बदलाव ना करते हुए वृद्ध व्यक्ति को इस दुनिया में रहने का हक मिल सके एवं उनको हक की लड़ाई लड़ने में सहूलियत के साथ- साथ व्यवस्था का लाभ भी मिल सके।
प्रमोद वात्सल्य एक 84 साल का वृद्ध व्यक्ति हैं एवं वे कृषि विभाग के रिटायर्ड ऑफिसर भी हैं साथ ही साथ वे अपना पूरा जीवन समाजिक कार्यकर्ता के रूप में व्यतीत किया है एवं वे अपने जीवन में आयुर्वेद को सर्वोपरि रखते हुए समाज को आयुर्वेद के क्षेत्र में बहुत कुछ सहयोग भी दिया है।